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= का चरित्र समाप्त हुआ ।
श्री नेमिनाथ भगवान् का चरित्र । उस काल और उस समय में अर्हन् श्रीनेमिनाथप्रभु के पांचों कल्याणक चित्रानक्षत्र में हुए हैं, सो इस प्रकार हैं :चित्रानक्षत्र में प्रभु स्वर्ग से च्यव कर माता के गर्भ में उत्पन्न हुए, चित्रानक्षत्र में उनका जन्म हुआ, चित्रानक्षत्र में दीक्षा ली, चित्रानक्षत्र में केवलज्ञान और केवलदर्शन हुआ तथा चित्रानक्षत्र में ही प्रभु मोक्ष गये ।
श्री नेमिनाथ का च्यवन और जन्मकल्याणक । उस काल और उस समय में अर्हन् श्री नेमिनाथप्रभु चातुर्मास का जो चौथा महीना और सातवां पक्ष था-कार्तिक वदि द्वादशी के दिन बत्तीस सागरोपम की स्थितिवाले अपराजित नामक महाविमान से अन्तर रहित च्यव कर इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, सौर्यपुर नामा नगर में, समुद्रविजय नामक राजा की शिवादेवी नामा रानी की कुक्षि में मध्यरात्रि में, चित्रानक्षत्र के साथ चंद्रयोग प्राप्त होने पर गर्भतया उत्पन्न हुए । यहां पर माता को हुए स्वप्नदर्शन तथा व्यन्तर देवों से आया हुआ निधानादि सब कुछ पूर्ववत् कहना ।
उस काल और उस समय में अर्हन् श्रीनेमिनाथप्रभु वर्षाकाल के प्रथम मास और दूसरे पक्ष में श्रावण शुक्ला पंचमी के दिन नव मास पूर्ण होने पर यावत् चित्रानक्षत्र में चंद्रयोग प्राप्त होने पर निरोग शरीरवाली शिवादेवी की कुक्षि से पुत्ररूप उत्पन्न हुए । यहां जन्ममहोत्सव समुद्रविजय राजा ने किया ऐसा जानना चाहिये ।
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