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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
सातवां
व्याख्यान
अनुवाद
||104।।
पर्यायान्तकृत् भूमि । श्री पार्श्वनाथ भगवान से लेकर चार पट्टधर मोक्ष पधारे, यह युगान्तकृत भूमि जानना । तथा प्रभु को केवलज्ञान होने के तीन वर्ष पीछे मोक्षमार्ग प्रचलित हुआ यह पर्यायान्तकृत् भूमि जानना चाहिये ।
प्रभु का मोक्ष कल्याणक । उस काल और उस समय में पुरुषप्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ प्रभु तीस वर्ष तक गृहस्थावास में रह कर, । तिरासी दिन छद्मस्थपर्याय पाल कर और तिरासी दिन कम सत्तर वर्ष तक केवलीपर्याय पाल कर एवं सत्तर वर्ष LG चारित्रपर्याय पाल कर और एक सौ वर्ष का सर्व आयु पाल कर वेदनी, आयु, नाम एवं गोत्रकर्म के क्षय हो जाने
पर इसी अवसर्पिणी काल में दुषमसुषम नामा चौथा आरा बहुतसा बीत जाने पर जो चातुर्मास काल का पहला
महीना और दूसरा पक्ष था अर्थात् श्रावण मास की शुक्ला अष्टमी के दिन सम्मेतशिखर नामक पर्वत के शिखर पर 2 तेतीस साधुओं के साथ चौविहार मासक्षमण का तप कर के विशाखा नक्षत्र में चंद्र योग प्राप्त होने पर प्रथम पहर
में दोनों हाथ पसारे हए कायोत्सर्ग ध्यानमुद्रा में मोक्ष सिधाएं, निवृत्ति पाये, यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए। र पुरुष प्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ प्रभु को निर्वाण हए बारह सौ वर्ष बीत गये और तेरहसौवें सैके का यह तीसवां वर्ष जाता है । उसमें श्री पार्श्वनाथ प्रभु के निर्वाण से ढाई सौ वर्ष बाद श्री वीर निर्वाण हुआ और उसके बाद नवसौ अस्सी वर्ष बीतने पर पुस्तकवाचना हुई. इससे तेरहसौ सैंके का यह तीसवां वर्ष जाता है । श्री पार्श्वनाथ प्रभु
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