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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir रात्रि को प्रतिमा ध्यान से खड़े थे । उस वक्त वह मेघमाली नामा देव प्रभु को उपद्रव करने आया । क्रोधान्ध हो उसने दिव्य शक्ति द्वारा बनाकर शेर, बिच्छू आदि के रूपों से प्रभु को डराया परन्तु प्रभु को भय रहित देख आकाश में अंधकार सरीखे घोर बादल बना कर कल्पान्तकाल के मेघ समान मूसलधार से वृष्टि शुरू की । सब दिशाओं में भयंकर बिजली का तड़तड़ाट और ब्रह्माण्ड को फोड़ डाले इस प्रकार की घनगर्जनाओं की गड़गड़ाट शुरू कर दी।और वर्षा चालु करने से थोडे ही समय में प्रभु के नाक तक पानी चढ़ आया । उसी वक्त धरणेंद्र का आसन हिलने लगा । ज्ञान से जान धरणेंद्र अपनी पट्टरानीयों सहित तुरन्त वहां आया और प्रथम अपनी फणाओं से उसने प्रभु पर छत्र धारण किया । फिर धरणेंद्र ने अवधिज्ञान से मेघमाली को ईर्षा से वर्षता देख उसे : धमकाया । मेघमाली प्रभु से क्षमा मांगकर तथा प्रभु का शरण ले अपने स्थान पर चला गया । धरणेंद्र भी प्रभु 6 समक्ष नाटयादि पूजा कर अपने स्थान को चला गया । इस प्रकार प्रभु ने देवादिकृत उपसर्गों को भली प्रकार - *सहन किया । प्रभु का कैवल्यज्ञान कल्याणक । अब पार्श्वनाथ प्रभु अणगार हुए और जाने आने की उत्तम प्रवृति वाले हुए, उन्हें आत्म भावना भाते हए तिरासी दिन बीत गये । जब चौरासीवां दिन बीत रहा था, ग्रीष्म काल का प्रथम मास और प्रथम ही * पक्ष था, उस चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की चौथ के दिन पहले पहर के समय घातकी नामा वृक्ष के नीचे जब 物網網紗網翰 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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