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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद ||102 || 405000 500 40000 www.kobatirth.org पहले भी पुरूषप्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ प्रभु का गृहस्थ धर्म में मनुष्य के योग्य अनुपम उपयोगरूप 'अवधिज्ञान था । पूर्वोक्त वीर प्रभु के समान सब कुछ समझ लेना चाहिये । यावत् गोत्रियों को धन बांट कर शरद् काल का जो दूसरा मास, तीसरा पक्ष अर्थात् पोष मास का कृष्ण पक्ष उस पोष मास की कृष्ण एकादशी के दिन प्रथम पहर में विशाला नाम की पालकी में बैठकर देव, मनुष्य और असुरों का समूह जिन के आगे चल रहा है ऐसे प्रभु वाणारसी नगरी के मध्य भाग से निकल कर आश्रमपद नामा उद्यान में जाते हैं। अशोक वृक्ष . के नीचे आकर अपनी पालकी को ठहरवाते हैं। पालकी में से उतर कर अपने आप शरीर से आभूषण माला आदि उतारते हैं, फिर प्रभु स्वयं पंच मुखी लोच करते हैं, चौविहार अट्टम का तप कर विशाखा नक्षत्र में चंद्रयोग होने पर इंद्र का दिया एक देवदूष्य वस्त्र ले प्रभु तीन सौ मनुष्यों के साथ घरत्याग कर साधुपन को प्राप्त हो हैं अर्थात् दीक्षा ग्रहण करते हैं । पुरुषों में प्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ प्रभु ने तिरासी दिन तक निरन्तर शरीर को वोसरा कर अर्थात् ममत्व न रखकर देव, मनुष्य और तिर्यच द्वारा किये हुए अनुकूल वो प्रतिकूल उपसर्गों को भली प्रकार सहन किया । उनमें देवकृत उपसर्ग कमठजीव मेघमाली का है जो निम्न प्रकार से है । मेघमाली का घोर उपसर्ग दीक्षा लेकर विचरते हुए प्रभु एक दिन एक तापस के आश्रम में एक कुवे के नजीक बड़ के वृक्ष नीचे एक For Private and Personal Use Only 40500405004050040 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सातवां व्याख्यान
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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