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छट्ठा
श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद
व्याख्यान
11991
उस काल और उस समय में श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु तीस वर्ष तक गृहस्थावास में रहकर बारह वर्ष से कुछ अधिक समय तक छद्मस्थ पर्याय पालकर तथा तीस वर्ष से कुछ कम समय तक केवली पर्याय पालकर, तथा समुच्चय बैतालीस वर्ष तक चारित्रपर्याय पालकर और बहत्तर वर्ष का अपना पूर्ण आयु पालकर, भवोपनाही वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्म क्षय होने पर, इस अवसर्पिणी में दुषमसुषम नामक चौथा आरा बहुतसा बीत जाने पर, अर्थात् उस आरे के तीन वर्ष और साढ़े आठ मास शेष रहने पर मध्यम पापानगरी में हस्तीपाल राजा के कारकुनों की शाला में सहाय न होने से एक, अद्वितीय अर्थात् अकेले ही परन्तु ऋषभ आदि के समान दश हजार परिवार सहित नहीं । कवि कहता है कि भगवान् के साथ कोई शिष्य मुक्ति नहीं गया, इस से दुषम काल में शिष्य गुरु की परवाह न रक्खेंगे । चौविहार छट का तप कर के स्वाति नक्षत्र के साथ चंद्रमा का योग आने पर, चार घड़ी रात्रि बाकी रही थी उस समय पद्मासन से बैठे हुए, पंचावन अध्ययन कल्याण फल के विपाकवाले, पंचावन अध्ययन पापफल के विपाकवाले और छत्तीस अपृष्ट व्याकरण अर्थात् बिना पूछे उत्तर कथन कर एक प्रधान नामक मरूदेवा अध्ययन को कथन करते हुए प्रभु काल धर्म पाये, संसार से विराम पाये, जन्म जरा मृत्यु के बन्धनों से मुक्त हुए, सिद्ध हुए, मुक्त हुए, सर्व संताप रहित हुए और सर्व दुःखों से रहित हुए |
श्रमण भगवान् श्री महावीर प्रभु मोक्ष गये बाद नव सौ वर्ष बीतने पर दशवें सैके का यह अस्सीवां संवत्सर काल जाता है । यद्यपि इस सूत्र का स्पष्टार्थ मालूम नहीं होता तथापि जैसे पूर्व टीकाकारों ने
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