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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir Tea 60 5 अंगूल अधिक मनुष्य क्षेत्र में रहे हुए संज्ञी पंचेद्रियों के मनोगत पदार्थो को जानता हो । ऋजमतिवाले तो चारों - तरफ संपूर्ण मनुष्य क्षेत्र में रहे हुए संज्ञी पंचेन्द्रियों के मनोगत घट आदि पदार्थ मात्र को साधारणतया जानते हैं । इन दोनों में इतना ही भेद समझना चाहिये । तथा देव, मनुष्य और असुरों की सभा में वाद में पराजित न हो सकें ऐसे चार सौ (400) वादियों की उत्कृष्ट वादी संपदा हुई । श्रमण भगवंत श्रीमहावीर के सात सौ (700) * शिष्यों ने मोक्ष प्राप्त किया यावत् सर्व दुःख से मुक्त हुए, तथा चौदह सौ (1400) साध्वियां मुक्ति में गई श्रमण-* भगवंत श्रीमहावीर प्रभु के आगामी मनुष्य गति में शीघ्र ही मोक्ष जानेवाले, देवभव में भी प्रायः वीतरागपन होने म से कल्याणकारी और आगामी भव में सिद्ध होने के कारण श्रेयस्कारी ऐसे आठ सौ (800) अनुत्तर विमान में प्र उत्पन्न होनेवाले मुनियों की उत्कृष्ट संपदा हुई । श्रमण भगवंत श्रीमहावीर प्रभु की दो प्रकार की अंतकृत भूमि हुई । पहली युगान्तकृत भूमि और दूसरी ॐ पर्यायन्तकृत भूमि । युग के उत्तम पुरूष का अन्त करे, वह युगान्तकृत भूमि-महावीर प्रभु के मोक्ष पधारने के बाद 25 सौधर्मास्वामी और जम्बूस्वामी परंपरा से मोक्ष गये, यानी तीनों मोक्ष पधारे, अब पीछे कोई मोक्ष नहीं जाएगा; यह युगान्तकृत भूमि समझना । तीर्थकर देव को केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद जब मोक्ष मार्ग शुरू हो वह पर्यायान्तकृत भूमि-महावीर प्रभु को केवलज्ञान उत्पन्न होने के चार वर्ष बाद मुक्तिमार्ग प्रारम्भ हवा; यह... 'पर्यायान्तकृत भूमि' समझना । For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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