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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
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छट्टा
व्याख्यान
अनुवाद
119811
(भगवान् का परिवार) उस काल और उस समय में श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु के इंद्रभूति आदि चौदह हजार (14000) साम् A ओं की उत्कृष्ट साधु संपदा हुई । चंदनबाला आदि छत्तीस हजार (36000) साध्वियों की उत्कृष्ट श्रावक संपदा
हुई । शंख, शतक आदि एक लाख उनसठ हजार (159000) श्रावकों की उत्कृष्ट श्रावक संपदा हुई । तथा सुलसा, रेवती आदि तीन लाख अढार हजार (318000) श्राविकाओं की उत्कृष्ट श्राविका संपदा हुई । (यहां पर जो सुलसा लीखी है वह बत्तीस पुत्रों की माता नागभार्या समझना चाहिये और रेवती प्रभु को औषध देनेवाली
जानना चाहिये) तथा सर्वज्ञ नहीं किन्तु सर्वज्ञ के समान वस्तुस्वरूप कथन करने के सामर्थ्यवाले एवं " सर्वाक्षरसंयोग को जाननेवाले तीन सौ (300) चौदहपूर्वियों की उत्कृष्ट संपदा हुई । अतिशय लब्धि को प्राप्त
करनेवाले तेरह सौ (1300) अवधिज्ञानियों की उत्कृष्ट संपदा हई । संपूर्ण और श्रेष्ठ ज्ञानदर्शन को धारण करने B वाले सातसौ (700) केवलज्ञानियों की उत्कृष्ट संपदा हुई । देव नहीं किन्तु देव सम्बन्धि ऋद्धि को विकुर्वने में 5
समर्थ ऐसे सातसौ (700) वैक्रिय लब्धिवालों की उत्कृष्ट संपदा हई । तथा ढाई द्वीप और दो समुद्रों में पर्याप्ताह संज्ञी पंचेंद्रियों के मनोगत भाव को जाननेवाले पांच सौ (500) विपुलमतियों की उत्कृष्ट संपदा हुई । विपुलमति उसको कहते हैं जो यह जानता हो-इसने जो घड़े का चिन्तन किया है वह सुवर्ण का बना हुआ है, पाटलीपुत्र में बना है, शरद् ऋतु में बना है, नीलवर्ण का है, इत्यादि सर्व भेद सहित चारों तरफ ढाई
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yea
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