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श्री कल्पसूत्र
छट्टा
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
118811
हे वादीरूप घड़े के लिए मुद्गर समान ! हे वादीरूप उल्लुओं के लिये सूर्य तुल्य है ! हे वादीरुप समुद्र के लिए है
अगस्ति के समान ! हे वादीरूप वृक्ष को उखाड़ फेंकने में हाथी के समान ! हे वादीरूप देवों में इंद्र के समान ! म
हे वादीरूप गरूड़ के प्रति गोविन्दक समान ! हे वादीरूप मनुष्यों के राजा ! हे वादीरूप कंस को मारने में कृष्ण के समान ! हे वादरूप मग के लिए सिंह के समान ! हे वादीरूप ज्वर के प्रति धन्वन्तरी वैद्य के समान ! हे वादियों के समूह में मल्ल के समान ! हे वादियों के हृदय के शल्य समान ! हे वादीरूप पतंगों को दीपक समान ! हे वादी समूह के मुकुट समान ! हे अनेक वादों को जीतनेवाले पंडित शिरोमणि ! हे सरस्वती का प्रसाद प्राप्त करनेवाले तेरी जय हो । इस प्रकार विरुदावली के नारों से जिन्होंने आकाश तल को गुंजायमान कर दिया है. उन पांच सौ शिष्यों द्वारा परिवेष्टित इंद्रभूति प्रभु के पास जाते हुए रास्ते में विचारता है- भला इस दुष्ट ने यह
क्या किया ? कि जो मुझे सर्वज्ञ मिथ्या आडम्बर से क्रोधित किया !! यह तो मेंडक काले नाग को लातें मारने में के लिए तैयार हुआ है या चहा अपने दांतों से बिल्ली के दांत तोड़ने को तैयार हुआ है । अथवा बैल अपने सींगों में LG से इंद्र के हाथी को मारने की इच्छा करता है ! अथवा हाथी अपने दांतों से पर्वत को गिरा देने का प्रयत्न करता
है ! या खरगोश सिंह की केशराओं को खेंचना चाहता है कि जो यह मेरे सामने लोक में अपना सर्वज्ञपन प्रसिद्ध xकरता है ! शेष नाग के मस्तक पर रहे हुए मणि को लेने के लिए इसने हाथ बढ़ाया है, क्यों कि इसने मुझे सर्वज्ञ
के अभिमान से को कोषायमान किया है । पवन के सन्मुख होकर इसने दावानल सुलगाया है । अथवा
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