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ॐ इसने शरीरसुख की इच्छा से कौंच की फली को आलिंगन किया है । खैर इन विचारों से क्या ? मैं अभी जाकर
उसे निरुत्तर कर देता हूं; क्यों कि जब तक सूर्य नहीं ऊगता तब तक ही खद्योत-और चंद्रमा प्रकाशमान रहते हैं. परन्तु सूर्योदय होने पर वे स्वयं फीके पड़ जाते हैं । वे हरिण, हाथी, घोड़ों के समूहो ! तुम शीघ्र ही इस जंगल
में से दूर भाग जाओ, क्यों कि आटोप सहित क्रोप से स्फुरायमान केशराओंवाला यहां पर केशरीसिंह आ रहा * है। मेरे भाग्य से ही यह वादी यहां आ पहुंचा है अतः सचमुच ही मैं आज उसकी जीभ की खुजली दूर करूंगा
। लक्षणशास्त्र में तो मेरी दक्षता है ही, साहित्य शास्त्र में भी मेरी बुद्धि तीक्ष्ण है, तर्कशास्त्र में तो मैंने निपुणता ग्र प्राप्त की है । इस लिए वह शास्त्र ही कौनसा है जिसमें मैंने परिश्रम नहीं किया । पंडितों के लिए कौनसा रस . अपोषित है? चक्रवर्ती के लिए क्या अजेय है ? वज के लिए क्या अभेद्य है ? महात्माओं के लिए क्या 0 - असाध्य है ? भूखों के लिए क्या अखाद्य है ? खल मनुष्यों के लिए कौनसा वचन अवाच्य है ? कल्पवृक्ष के लिए
न देने लायक क्या है ? वैरागी के लिए क्या त्याज्य है ? इसी प्रकार तीन लोक को जीतनेवाले तथा महापराक्रमी LE ऐसे मेरे लिए विश्व में क्या अजेय है ? अतः अभी जाकर उसे जीत लेता हूं । इत्यादि विचारों में इंद्रभूति समवसरण के दरवाजे पर आ पहुंचा ।
प्रथम पगलिये पर ठहर कर प्रभु को देख इंद्रभूति विचार में पड़ गया कि-क्या यह ब्रह्मा, विष्णु, या सदाशिव शंकर है ? नहीं सो नहीं है, क्यों कि ब्रह्मा तो वृद्ध है, विष्णु श्याम है, और शंकर पार्वती सहित हे।
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