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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
छट्टा
व्याख्यान
अनुवाद
1187।।
LAUR
पंडित तो मेरे डर से कृश शरीरवाले हो गये हैं. लाट देश के पंडित डर के मारेचारे कहीं दूर भाग गये तथा द्राविड़ LS देश के चतुर पंडित मेरी प्रशंसा सुनकर ही लज्जातर हो गये हैं ! अहो आश्चर्य ! जब मैं वादियों का इच्छातुर
बना हूं तब मेरे लिये जगत में वादियों का दुष्काल पड़ गया ! फिर मेरे सामने यह कौन चीज है जो अपने
सर्वज्ञपन के मान को धारण करता है ? ये विचार कर जब वह प्रभु के पास आने को उत्सुक हुआ तब उसे * अग्निभूति ने कहा- हे बन्धु ! उस वादी कीट के पास आपको जाने की क्या आवश्यकता है ? मैं वहां जाता
हूं । क्यों कि एक कमल को उखेड़ फेंकने के लिए क्या हाथी जोड़ने की जरूरत होती है ? इंद्रभूति बोला-यद्यपि म उसे मेरा एक शिष्य भी जीत सकता है तथापि वादी का नाम सुनकर यहां रहा नहीं जाता। जैसे पीलते हए * कोई एक तिल का दाना रहा जाता है. दलते हुए अनाज का एक दाना रहा जाता है. ज्यों अगस्ति द्वारा समुद्र
पीते हुए सरोवर रहा जाय तथा काटते हुए कोई छिलका रह जाय वैसे ही यह मेरे लिए हुआ है । तथापि मैं व्यर्थ ॐ सर्वज्ञ वादी को सहन नहीं कर सकता । इस एक के न जीतने पर मेरी जीत ही नहीं गिनी जा सकती । सती
स्त्री एक दफा भी अपने शीलव्रत को भ्रष्ट होवे तो वह सदैव असती ही कही जाती है । आश्चर्य है कि तीन । जगत में मैंने हजारों वादीयों को जीत लिया है परन्तु खिचड़ी की हड़ियां में जैसे कोई कोडू मूंग का दाना रह जाता है त्यों यह एक वादी रह गया है । यदि मैं इसे न जीतूं तो जगत को जीतने से प्राप्त किया मेरा यश भी हो नष्ट हो जायगा । क्यों कि शरीर में रहा हुआ एक शल्य शरीर के नाश का हेतु बनता है । क्या जहाज में पड़ा
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