________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
औषधि से निरोगी हो गये । तथा वह वैद्य और वह वणिक मरकर स्वर्ग में गये । ग्वाला मरकर सातवीं नरक में गया । इस प्रकार ग्वाले से ही उपद्रव शुरू हुए और ग्वाले से ही समाप्त हुए ।
पूर्वोक्त उपसर्गो में जघन्य मध्यम ओर उत्कृष्ट विभाग हैं । कटपूतना का शीतोपसर्ग जघन्य से उत्कृष्ट समझना चाहिए, कालचक्र मध्यम में उत्कृष्ट जानना और कानों से सलाकाओं का निकालना उत्कृष्ट में उत्कृष्ट - 5 समझना चाहिए उन सब उपसर्गो को श्री वीरप्रभु ने सम्यक् प्रकार सहन किया अब श्रमण भगवान श्री महावीर 5 A प्रभु श्रणगार हुए इर्या समिति गमणा गमण में उत्तम प्रवृतिवास हए । भाषासमिति वाले तथा एषणा समिति-बैतालिस 10
दोष रहित भिक्षा ग्रहण करने में उत्तम प्रवृत्तिवाले हुए । आदानमंडभतमिक्षेपणा समिति-उपकरण, वस्त्र,
मिट्टी के बरतन, पात्र वगैरह ग्रहण करने, रखने उठाने आदि में उपयोगयुक्त प्रवृत्ति वाले । पारिष्ठापनिका * समिति-विष्ठा, मुत्र, थुक, श्लेष्म, शरीर का मेल इत्यादि को त्यागने में सावधान हुए । यद्यपि प्रभु को भंड.. और श्लेष्म आदि न होने से यह संभवित नहीं तथापि पाठ अखण्डित रखने के लिए ऐसा कहा गया है । प्राइस. प्रकार प्रभ मन, वचन और शरीर की उत्तम प्रवृत्तिवाले हुए । इस गुप्त एवं गुप्तेंद्रिय तथा वसति आदि ग्रन
नव वार्डो से सुशोभित ब्रह्मचर्य को पालते है । अतः गुप्त ब्रह्मचारी हुए, तथा क्रोध, मान, माया और लोभ रहित एवं अन्तर वृत्ति से शान्त, बहिर्वृत्ति से प्रशान्त और दोनों वृत्तियों से उपशान्त तथा सर्व प्रकार संताप
0000000
0600
For Private and Personal Use Only