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मी
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
छट्टा
व्याख्यान
अनुवाद
118211
वह धन देकर और यह चंदना वीर प्रभु की प्रथम साध्वी होगी यों कहकर इंद्र चला गया । फिर अनुक्रम से भिका ग्राम में इंद्र ने प्रभु को नाटयविधि दिखलाकर कहा आपको अब इतने दिन में केवलज्ञान की उत्पत्ति होगी । मेंढिक नामा ग्राम में चमरेंद्र ने प्रभु को कुशल पूछा । वहां से प्रभु चम्पानगरी में पधारे ।
- अंतिम उपसर्ग - बहारवां चौमासा प्रभु षण्मास नामक ग्राम जाकर बाहर उद्यान में ध्यान लगाकर खड़े रहे । प्रभु के पास है पर एक ग्वाल अपने बैल छोड़कर ग्राम में चला गया । फिर आकर उसने प्रभु से पूछा कि-हे देवार्य ! मेरे बैल कहां पर
है ? प्रभु के मौन रहने से क्रोधित हो उसने प्रभु के कानों में बांस की सलाकायें ऐसी ठोक दी जिस से वे अन्दर परस्पर एक दूसरी से मिल गई और बाहर से अग्रभाग कतर देने से बेमालूम कर दी । प्रभु ने त्रिपुष्ट के भवर में जो शय्यापालक के कानों में तपा हुआ सीसा डालकर कर्म उपार्जन किया था वह अब वीर के भव में उदय आया था । वह शय्यापालक भी अनेक भव कर के यह ग्वाला बना था । वहां से प्रभु मध्यम अपापा में गये । वहां पर सिद्धार्थ नामक वणिक के घर भिक्षा के लिए आये हुए प्रभु को देख खरक नामा वैद्य ने उन्हें एक शल्यसहित जाना । फिर उस वणिक ने वैद्य को उद्यान में साथ ले जाकर उन सलाकाओं को प्रभु के कानों में
से संडासी से खेंच निकाली । उनके निकालते समय प्रभु ने ऐसी आराटी की जिस से सारा * उद्यान भयंकर-सा बन गया । वहां पर लोगों ने एक देवमंदिर भी बनवाया । फिर प्रभु संरोहिणी नामक
श्रीमाली
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