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अच्छे धान्य पैदा होते थे । अब यदि मेरे लड़के निश्चिन्त रह कर खेत में से घास, तृण आदि न उखाड़ेंगे तो धान्य पैदा न होने से उन विचारों का क्या हाल होगा ? इस प्रकार सरलता से अपना यथार्थ अभिप्राय गुरू के समक्ष कह दिया।
गुरू ने कहा कि- हे महानुभाव ! तुमने यह दुर्ध्यान किया है, मुनियों को ऐसा ध्यान चिन्तवन नहीं करना चाहिये । गुरू - के निषेध करने पर उसने तहत्ति कह कर मिच्छामि दुक्कडं दिया । ये दो दृष्टान्त प्रथम तीर्थकर के समय के प्राणियों की * जड़ता और बतलाते हैं । अब श्रीवीर प्रभु के शासन के साधुओं के लिए भी दो दृष्टान्त देते हैं
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
प्रथम
व्याख्यान
अनुवाद
11611
वक्र-जड़ पर दृष्टांत (पहिला) (1) एक दिन श्रीवीर प्रभु के शासन के साधु मार्ग में एक नट का नाच देख बाहर से देर में आये । मालूम x. होने से गुरू ने नटके नाच देखने का निषेध किया । फिर एक दिन वे रास्ते में नाचती हुई नटनी को देख कर आये । गुरूने देरी का कारण पूछा तब सत्य छिपा कर और ही उत्तर देने लगे । जब गुरूने तर्जना कर पूछा, तब उन्हों ने यथार्थ बात बतला दी । गुरू ने धमकाया और कहा कि-उस दिन निषेध किया था फिर भी तुम नटनी का नाच देखने क्यों खड़े रहे ? ऐसी शिक्षा देने पर उल्टा गुरु को ही वे ओलंभा देने लगे कि जब आपने
नट का नाच निषेध किया था तभी नटनी के नाच का भी निषेध करना चाहिए था । इसमें हमारा क्या दोष * है ? यह तो आपका ही दोष है जो उस वक्त आपने नटी का नाच देखना भी निषेध न किया ।
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