________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
405014050 450 40
www.kobatirth.org
तीसरा चातुर्मास वहां से प्रभु चंपा नगरी में पधारे। वहां द्विमासक्षपण करके तीसरा चातुर्मास रहे । अन्तिम द्विमास का पारणा चंपा के बाहर करके कोल्लाग सन्निवेश में गये। वहां एक शून्य घर में ध्यानस्थ रहे। गोशाला ने भी उसी घर में रह कर सिंह नामक एक ग्रामणी पुत्र को विद्युन्मती नामा दासी के साथ क्रीड़ा करते देख उसकी हंसी की। उसने भी गोशाला को पीटा । फिर वह प्रभु को कहने लगा- आपने मुझे पिटते हुए को क्यों न छुडाया ? सिद्धार्थ ने कहा कि फिर ऐसा न करना, फिर प्रभु पात्तालक तरफ गये। वहां भी एक शून्य घर में रहे। वहां भी गोशाला ने स्कंदक को अपनी दासी स्कंदिला के साथ क्रीडा करते देख हंसी की और पूर्वोक्त प्रकार से मार खाई । फिर प्रभु कुमारक सन्निवेश में जाकर चंपारमणीय नामक उद्यान में ध्यानस्थ रहे। वहां श्री पार्श्वनाथ प्रभु के शिष्य मुनिचंद्र मुनि बहुत से शिष्य परिवार सहित एक कुमार की शाला में रहे हुए थे। उनके साधुओं को देख गोशाला ने पूछा कि तुम कौन हो ? उन्होंने कहा हम निर्ग्रन्थ हैं । गोशाला बोला-कहां हमारा धर्माचार्य और कहां तुम निर्ग्रन्थ ? उन्होंने कहा जैसा तू है वैसा ही तेरा धर्माचार्य होगा । गोशाला गुस्से होकर बोला- मेरे धर्माचार्य के तप तेज से तुम्हारा आश्रम जल । वे बोले-हमें इस बात का डर नहीं है । फिर उसने प्रभु के पास आकर सब वृतान्त कह सुनाया । सिद्धार्थ ने कहा कि मुनियों का आश्रम नहीं जला करता । रात्रि को जिनकल्प की तुलना करते काउसग्ग में रहे हुए मुनिचंद्र को कुमार ने चोर की बुद्धि से मार डाला । मुनिचंद्र अवधिज्ञान प्राप्तकर मृत्यु पाकर स्वर्ग में गये । उसकी
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir