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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsen Gyarmandie श्री कल्पसूत्र छट्टा हिन्दी व्याख्यान अनुवाद 117611 -महिमा के लिए देवों ने वहां प्रकाश किया । तब गोशाला बोला कि देखो अब उनका उपाश्रय जल रहा है। - सिद्धार्थ ने उसे फिर सत्य घटना सुनाई तो वह उनके शिष्यों को वहां धमका कर आया । प्रभु फिर चौरों की ओर गये । वहां पर प्रभु और गोशाला को जासूस समझकर पकड लिया । प्रथम गोशाला को अभी हवालत में डाला ही था कि इतने में ही वहां पर उत्पल नामक नैमित्तिये की सोमा और जयन्ती नामा बहिनें आ गई, जो संयम लेकर पालने में असमर्थ हो परिवाजिका बन गई थी । उन्होंने प्रभु को देख पहिचान लिया और उस संकट से * बचाया । वहां से प्रभु पृष्टचंपा तरफ गये । चौथा चातुर्मास-भगवान ने चार मासक्षपण तप करके पृष्टचम्पा में किया । प्रभु को पारणा कराने के लिए जीरण शेठ भावना भाता था परन्तु पूर्ण सेठ के यहां पारणा हुआ । चौमासा बीतने पर प्रभु कायंगल सन्निवेश में जाकर श्रावस्थी नगरी 2 में पधारे । वहां बाहर के भाग में कायोत्सर्ग ध्यान में रहे । वहां सिद्धार्थ ने गोशाला से कहा कि आज तूं मनुष्य का : मांसभक्षण करेगा । गोशाला भी इसका निवारण करने को भिक्षा के लिए बनियों के घर में गया । वहां एक पितृदत्त नामा वणिक रहता था । उसकी स्त्री सदैव मृतक बच्चे को जन्म देती थी । उसे शिवदत्त नामक निमित्तिये ने बच्चे जीने का उपाय बतलाया कि तुम्हारे मृतक बच्चे का मांस खीर में मिलाकर किसी भिक्षुक को खिलाना । उसने उसी विधिपूर्वक गोशाला को खिलाया और घर जला देने के डर से घर का दरवाजा भी बदल दिया । गोशाला जब उस बनिये के घर भोजन 000000000000 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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