________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
अनुवाद
117511
www.kobatirth.org
उस गोशालक ने प्रभु से कहा कि मैं आपका शिष्य हूं। फिर दूसरे पारणे में नन्द सेठ ने पक्वान आदि से, तीसरे एक पारणे में सुनंन्द सेठ ने परमान्न (खीर) आदि से प्रभु को आहार कराया । चौथे पारणे को प्रभु कोल्लाग सन्निवेश में पधारे । वहां बहुल नामक ब्राह्मण ने प्रभु को खीर से पारणा कराया। वहां भी पंच दिव्य प्रकट हुए ।
**
से
अब गोशाला प्रभु को उस जुलाहे की शाला में न देख सारे राजगृह नगर में उन्हें ढूंढता फिरा । कहीं पर भी न मिलने पर ब्राह्मणों को उपकरण देकर और मुख तथा मस्तक मुंडवा कर भगवान से कोल्लाग में जामिला एक और “अब से मुझे आपकी दीक्षा हो" यों कह कर प्रभु के साथ ही रहने लगा । प्रभु भी उस शिष्य थ 'सुवर्णखिल गांव की ओर चले । मार्ग में ग्वाले एक बड़ी हांडी में खीर पका रहे थे। यह देख गोशाला प्रभु बोला कि यहां ही भोजन करके चलेंगे । सिद्धार्थ ने कहा कि इन की हंडिया फूट जायगी, गोशाले ने उन से कह दिया अतः उन के अनेक प्रयत्न करने पर भी हांडी फूट गई। इससे गोशाला ने यह मत निश्चय कर लिया कि 'होनहार होती ही है। वहां से प्रभु ब्राह्मणग्राम में गये । वहां नन्द और उपनन्द इन दो भाईयों के नाम से दो मुहल्ले थे। प्रभु ने नन्द के मुहल्ले प्रवेश किया, प्रभु को नन्द ने बोहराया । गोशाला उपनन्द के मुहल्ले में
वहां उसे उपनन्द ने वासी अन्न खिलाया, इस से क्रोधित हो गोशाला ने शाप दिया कि यदि मेरे धर्माचार्य का तपतेज हो तो इस का घर जल जाय । प्रभु की महिमा देखने के लिए समीपवर्ती देवों ने उसका घर जला दिया ।
0%e0
For Private and Personal Use Only
10500 40 500 40
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
छट्टा
व्याख्यान
75