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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद 116511 www.kobatirth.org आ रही थी। वे ऐसी अवस्था में आती हुई किस मनुष्य को प्रथम त्रास और जाने के बाद हास्य न कराती थी ? यहां तक किसी के शरीर से वस्त्र भी खिसक गये थे, किसी ने हाथ में नाड़ा ही पकड़ा हुआ था । ऐसी परिस्थिति होने पर भी उन्हें जरा भी शरम नहीं लगी, क्योंकि सब लोग प्रभु को देखने के ध्यान में मग्न थे। कितनी एक स्त्रियां तो प्रभु का दीक्षा महोत्सव देखने की उत्सुकता में यहां तक बेभान हो गई थी कि अपने रोते हुए बच्चों को छोड़कर पास में खड़े बिल्ली के बच्चों को ही अपना बच्चा समझ गोद में उठा लाई थी। कोई-कोई स्त्री प्रभु के दर्शन कर मन में कहती अहा ! कैसा सुन्दर रूप है ? कैसा तेज है ? अहा शरीर का सौभाग्य कैसा है !! मैं विधाता की चतुराई पर वारफेर करू जिसने ऐसा सुन्दर रूप बनाया है ! विकसित गालवाली कितनी एक स्त्रियां प्रभु के मुख को देखने में ऐसी तल्लीन हुई थीं कि उन के शरीर से सुवर्ण के आभूषण निकल पड़ने पर भी उन्हें मालूम नहीं होता था। कोई कोई चंचल नेत्रवाली स्त्री तो अपने हस्तकमलों से प्रभु की ओर मोती फेंकती थी, कितनी एक बाजों की तान में आकर मधुर स्वर में गाने लगीं और कई एक आनन्द में आकर नाचने लग गई । इस प्रकार नगर के नारियों द्वारा जिसका दीक्षा महोत्सव देखा जा रहा है ऐसे प्रभु के आगे प्रथम रत्नमय अष्टमंगल चलते हैं, जिनके नाम ये हैं- स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त्त, वर्धमान, भद्रासन, कलश, मत्स्ययुगल और दर्पण उसके बाद पूर्ण कलश, सारी, चामर, बडी पताका, मणि और स्वर्णमय पादपीठ छत्र, For Private and Personal Use Only 0500405000000 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांचवा व्याख्यान 65
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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