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वाला सिंहासन फिर सवार रहित एक सौ आठ हाथी, उतने ही घोडे, उतने ही घंटे और पताकाओं से मनोहर, सजे हुए और शस्त्रों से भरे हुए रथ, उतने ही उत्तम पुरुष, फिर अनुक्रम से घोड़े, हाथी, रथ तथा पैदल सेना, फिर एक हजार छोटी पताकाओं से मंडित एक हजार योजन ऊंचा महेन्द्र ध्वज, खड्गधारी, भालों को धारण करनेवाले, ढाल धारी, हास्य तथा नृत्य करने वाले जय जय शब्द करते भाट चारण आदि चलते हैं । फिर बहुत से उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल, क्षत्रीयकुल के राजा, कोतवाल, मांडलिक, कौटुम्बिक, सेठ लोग, सार्थवाह, देव, देवीयां प्रभु के आगे चलते तत्पश्चात् स्वर्ग, मृत्यु लोक में रहनेवाले देव, मनुष्य और असुर चलते हैं । तथा आगे शंख बजानेवाले, चक्रधारी, हलधारी अर्थात् गले में सुवर्ण का हलके आकारवाला आभूषण धारी, चाटु वचन बोलनेवाले, दूसरों को जिन्होने अपने कंधे पर बैठाया हुआ है ऐसे मनुष्य, विरूदावली बोलनेवाले, घंटा लेकर चलनेवाले रावलिये-इन सबसे वेष्टित प्रभु को कुल की वृद्ध नारियाँ इष्ट विशेषणोंवाले वचनों से अभिनन्दित करती हुई बोलती हैं कि "जय जय नन्दा, जय जय भद्दा महंते" अर्थात् हे समृद्धिमन् ! हे भद्रकारक ! आप जय पाओ | आपका भद्र हो तथा अजित इंद्रियों को अतिचार रहित ज्ञानदर्शनचारित्र से वश करो, वश किये हुए श्रमण धर्म को पालन करो । हे प्रभो ! सर्व विघ्नों को जीत कर मोक्ष में निवास करो । रागद्वेष रूप मल्लों को नष्ट करो । हे प्रभो ! उत्तम शुक्ल ध्यान से धैर्य में प्रवीण हो अष्ट कर्मरूप शत्रुओं का नाश करो । हे वीर ! अप्रमत्त होकर तीन लोकरूप जो मल्ल
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