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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 824 कालिदास पर्याय कोश परिणतदल शाखानुत्पतन् प्रांशवृक्षान्भ्रमति पवनधूतैः सर्वतोऽग्निर्वनान्ते। 1/26 पवन से भड़काई हुई आग उन ऊँचे वृक्षों पर उछलती हुई वन में चारों ओर घूम रही है, जिनकी डालियों के पत्ते बहुत गर्मी पड़ने से पक-पककर झड़ते जा रहे मुदित इव कदम्बैर्जातपुष्पैः समन्तात्पवन चलित शाखैः शाखिभिर्नृत्यतीव। 2/24 कदंब के फूल ऐसे लग रहे हैं, मानो पूरा जंगल मगन हो उठा हो। पवन से झूमती हुई शाखाओं को देखकर ऐसा लगता है मानो पूरा का पूरा जंगल नाच रहा हो। मन्दानिलाकुलितचारुतराग्रशाखः पुष्पोद्मप्रचय कोमल पल्लवानः। 3/6 जिसकी शाखाओं की सुंदर फुनगियों को धीमा-धीमा पवन झुला रहा है, जिस पर बहुत से फूल खिले हुए हैं, जिसकी पत्तियाँ बड़ी कोमल हैं। ताम्रप्रवालस्तबकावनम्राश्चूतमाः पुष्पितचारुशाखाः। 6/17 लाल-लाल कोपलों के गुच्छों से झुके हुए और सुंदर मंजरियों से लदी हुई शाखाओं वाले आम के पेड़। प्रवासी 1. अध्वग - [ अद् + क्वनिद् दकारस्य धकारः + गः] यात्री, बटोही, मार्गचलने वाला, पथिक। कान्तावियोगपरिखेदितचित्तवृत्तिर्दृष्ट्वाऽध्वगः कुसुमितान्सहकारवृक्षान्। 6/28 अपनी स्त्रियों से दूर रहने के कारण जिनका जी बेचैन हो रहा है, वे यात्री जब मंजरियों से लदे हुए आम के पेड़ों को देखते हैं, तो। 2. पथिक - [पथिन् + ष्कन्] यात्री, मुसाफिर, बटोही। अपहृतमिव चेतस्तोयदैः सेन्द्रचापैः पथिकजनवधूनां तद्वियोगाकुलानाम्। 2/23 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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