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कालिदास पर्याय कोश जिनके पति परदेस चले गए हैं, वे स्त्रियाँ जब सूखे हुए मार्ग को देखती हैं। अभिमुखमभिवीक्ष्य क्षामदेहोऽपि मार्गे मदनशरनिघातैर्मोहमेति प्रवासी। 6/30 परदेस में पड़ा हुआ यात्री एक तो यों ही बिछोह से दुबला-पतला रहता है, जब मार्ग में ये देखता है तो कामदेव के बाणों की चोट खाकर मूर्च्छित होकर गिर पड़ता है।
पर्ण 1. किसलय - [ किञ्चित् शलति - किम् + शल् + क (कयन्) वा० पृषो०
साधु०] पल्लव, कोमल अंकुर, कोंपल। कर किसलयकान्तिं पल्लवैर्विदुमाभैरुपहसति वसन्तः कामिनीनामिदानीम्। 6/31 इस समय यह वसंत मूंगे जैसी लाल-लाल कोमल पत्तों की ललाई दिखाकर
उन कामिनियों की कोंपलों जैसी कोमल और लाल हथेलियों को जला रहा है। 2. दल - [ दल + अच्] छोटा अंकुर या कोंपल, फूल की पंखुड़ी, पत्ता।
परिणतदलशाखानुत्पतन प्रांशुवृक्षान्भ्रमति पवनधूतः सर्वतोऽग्निर्वनान्ते। 1/26 पवन से भड़काई हुई जंगल की आग उन ऊँचे वृक्षों पर उछलती हुई वन में चारों
ओर घूम रही है, जिनकी डालियों के पत्ते बहुत गर्मी पड़ने से पक-पककर झड़ते जा रहे हैं। प्रभिन्नवैदूर्यनिभैस्तृणाकुरैः समाचिता प्रोत्थितकन्दलीदलैः। 2/5 छितराई हुई वैदर्य मणि के समान दिखाई देने वाली घास के कोमल अंकुरों से भरी हुई, ऊपर निकले हुए कंदली के पत्तों से लदी हुई। कुवलयदलनीलैरुन्नतैस्तोयननैर्मृदुपवनविधूतैर्मन्दमन्दं चलद्भिः । 2/23 कमल के पत्तों के समान साँवले, पानी के भार से झुक जाने के कारण और
धीमे-धीमे पवन के सहारे धीरे-धीरे चलने वाले। 3. पत्र - [ पत् + ष्ट्रन्] पत्ता, फूल का पत्ता।
नितान्तनीलोत्पलपत्रकान्तिभिः क्वचित्प्रभिन्नाञ्जनराशिसंनिभैः। 2/2
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