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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋतुसंहार 811 सभद्रमुस्तं परिशुष्ककर्दमं सरः खनन्नायतपोत्रमण्डलैः। 1/17 नागरमोथे से भरे हुए बिना कीचड़ वाले गड्ढे को खोदता हुआ ऐसा लगता है। परस्परोत्पीडनसंहतैर्गजैः कृते सरः सान्द्रविमर्दकर्दमम्। 1/19 यहाँ पर हाथियों ने इकट्ठे होकर आपस में लड़-भिड़कर इस ताल को कीचड़ के रूप में बदल डाला है। पंक - [ पंच् विस्तारे कर्मणि करणे वा घञ्, कुत्वम्] दलदल, कीचड़, लसदार मिट्टी। पयोधराश्चन्दनपङ्कचर्चितास्तुषारगौराप्तिहार शेखरः। 1/6 हिम के समान उजले और अनूठे हार से सजे हुए चंदन के लेप से पुते स्तन देखकर। विवस्वता तीक्ष्णतरांशुमालिनां सपङ्कतोयात्सरसोऽभितापितः। 1/18 धूप से तपे हुए (मेंढक) कीचड़ युक्त (गॅदले) जल वाले पोखर से बाहर निकल-निकल कर। विगतकलुषम्भः श्यानपङ्का धरित्रीविमलकिरणचन्द्रं व्योम ताराविचित्रम्। 3/22 पानी का गैंदलापन दूर हो गया है, धरती पर का सारा कीचड़ सूख गया है और आकाश में स्वच्छ किरणों वाला चंद्रमा और तारे निकल आए हैं। पथ 1. पथ - [ पथ् + क (घबार्थे)] रास्ता, मार्ग। रवेर्मयूखैरभितापितो भृशंविदह्यमानः पथि तप्तपांसुभिः। 1/13 धूप से एकदम तपा हुआ और मार्ग की गर्म धूल से झुलसा हुआ। 2. मार्ग - [मार्ग + घञ्] रास्ता, सड़क, पथ। तडित्प्रभादर्शितामार्गभूमयः प्रयान्ति रागादभिसारिका स्त्रियः। 2/10 लुक-छिपकर अपने प्यारे के पास प्रेम से जाने वाली कामिनियाँ बिजली की चमक से आगे का मार्ग देखती हुई चली जा रही हैं। मार्ग समीक्ष्यतिनिरस्तनीरं प्रवासखिन्नं पतिमुद्वहन्त्यः। 4/10 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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