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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेघदूतम् 755 गण्डाभोगात्कठिनविषमामेकवेणी करेण। उ० मे० 34 उसी उलझी हुई रूखी चोटी को वह अपने हाथों से अपने भरे हुए गालों पर से बार-बार हटा रही होगी। वामश्चास्याः कररुहपदैर्मुच्यमानो मदीयैः। उ० मे० 38 उसकी बाईं जाँघ पर न तो तुम्हें मेरे हाथ के नखचिह्न ही बने मिलेंगे। भुज - [भुज् + क] भुजा, हाथ। पश्चादुच्चैर्भुजतरुवनं मण्डलेनाभिलीन: सान्ध्यं तेजः। पू० मे० 40 तुम सांझ की ललाई लेकर उन वृक्षों पर छा जाना जो उनके ऊँचे उठे हुए बाँह के समान खड़े होंगे। सद्यः कण्ठच्युतभुजलताग्रन्थि गाढोपगूढम। उ० मे0 39 मुझसे कसकर लिपटी हुई हो तो मेरे कंठ में पड़ी हुई उसकी भुजाएं छूट न जाएँ। 3. हस्त - [हस् + तन्, न इट्] हाथ। दिङ्नागानां पथि परिहरन्स्थूलहस्तावलेपान। पू० मे० 14. ठाठ से उड़ते हुए तुम दिग्गजों की मोटी सँड़ों की फटकारों को हाथ से ढकेलते हुए। रत्नच्छाया खचितबलिभिश्चामरैः क्लान्त हस्ताः। पू० मे० 39 जिनके हाथ कंगन के नगों की चमक से दमकते हुए दण्ड वाले चंवर डुलाते-डुलाते थक गए होंगे। शंभोः केशग्रहणमकरादिन्दु लग्नोर्मिहस्ता। पू० मे० 54 वे अपनी लहरों के हाथ चंद्रमा पर टेककर शिवजी के केश पकड़कर। हित्वा तस्मिन्भुजगवलयं शंभुना दत्तहस्ता। पू० मे० 64 महादेव जी उनके (पार्वती जी) के डर से अपने साँपों के कड़े हाथ से उतार दिए होंगे। हस्ते लीलकमलके बालकुन्दानुबिद्धं। उ० मे0 2 । वहाँ की कुलबधुएँ हाथ में कमल के आभूषण पहनती हैं अपनी चोटियों में नये खिले हुए कुन्द के फूल खोंसती हैं। हस्तप्राप्यस्तबकनमितो बालमन्दार वृक्षः। उ० मे0 15 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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