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मेघदूतम् 2. दिनकर - [द्युति तमः, दो (दी) + नक्, ह्रस्वः + करः] सूरज, सूर्य।
पत्रश्यामादिनकरहयस्पर्धिनो यत्र वाहाः। उ० मे० 13 पत्ते के समान साँवले वहाँ के घोड़े अपने रंग और अपनी चाल में सूर्य के घोड़ों
को भी कुछ नहीं समझते। 3. भानु - [ भा + नु] सूर्य।
स्थातव्यं ते नयनविषयं यादवत्येति भानुः। पू० मे० 38 तब तक ठहर जाना जब तक सूर्य सभी प्रकार से आँखों से ओझल न हो जाएँ। शान्तिं नेयं प्रणयभिरतो वर्त्म भानोस्त्यजाशु। पू० मे0 43 उस समय तुम सूर्य को मत ढकना क्योंकि वे भी उस समय अपनी प्यारी को सांत्वना दे रहे होंगे। सवितृ - [सृ + तृच्] सूर्य। नैशो मार्गः सवितुरुदये सूच्यते कामिनीनाम्। उ० मे० 11 सूर्य के उदय होने पर इन वस्तुओं को मार्ग में बिखरा हुआ देखकर लोग समझ
लेते हैं कि कामिनी स्त्रियाँ रात में किधर से गईं होंगी। 5. सूर्य - [सरति आकाशे सूर्यः - सृ + क्यप्, नि०] सूरज।
दृष्टे सूर्ये पुनरपि भवान्वाह्ये दध्वशेष मन्दायन्ते। पू० मे० 42 फिर दिन (सूर्य के) निकलते ही वहाँ से चल देना, क्योंकि जो काम करने का बीड़ा उठाता है, वह आलस्य नहीं किया करता। सूर्या पाये न खलु कमलं पुष्पति स्वामभिख्याम्। उ० मे० 20 सूर्य के छिप जाने पर तो कमल उदास हो ही जाता है। दिक्संसक्तप्रविततघनव्यस्त सूर्यातपानि। उ० मे० 48 जब चारों ओर उमड़ी हुई घने बादलों की घय सूर्य पर छा जाएगी।
स्कन्द 1. शरवणभव - स्कन्द, कार्तिकेय, शिवपुत्र का नाम।
आराध्यैनं शरवणभव देवमुल्लङ्घिताध्वा। पू० मे० 43 स्कन्द भगवान की पूजा करके जब तुम आगे बढ़ोगे तो।
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