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कुमारसंभव 2. पीत :-वि० [पा+क्त] पीलारंग।
रक्तपीत कपिशाः पयोमुचा कोटयः कुटिलकेशि भात्यमः। 8/45 हे धुंघराले बालों वाली ! ये सामने लाल-पीले और भूरे बादल के टुकड़े फैले हुए ऐसे लग रहे हैं।
पाद
1. पाद :-[पद+घञ्] पैर
तेषां मध्यगतासाध्वीं पत्युः पादार्पितेक्षणा। 6/11 जिनके बीच में, अपने पति के चरणों की ओर निहारती हुई सती अरुन्धती ऐसी लगती थीं। नमयन्सार गुरुभिः पादन्यासैर्वसुंधराम्। 6/50 जब हिमालय अपने ठोस बोझीले पैर बढ़ाता हुआ चला, तो उसके पैरों की धमक से पृथ्वी भी पग-पग पर झुकती चली। यथैव श्लाघ्यते गंगा पादेन परमेष्ठिनः। 6/70 जैसे गंगाजी, विष्णु के चरणों से निकलकर अपने को बहुत बड़ा मानती हैं। अकारत्यकारयितव्यदक्षा क्रमेण पादग्रहणं सतीनाम्। 7/27 विवाह के सब रीति-ढंग जानने वाली मेना ने फिर सब सखियों के पैर छुआए।
पुलिन 1. पुलिन :-[पुल्+इनन् किच्च] रेतीला किनारा, रेतीला समुद्र तट, नदी तट,
लघु द्वीप। तत्र हंसधवलोत्तरच्छदं जाह्नवी पुलिन चारुदर्शनम्। 8/82
हंस के समान उजली चादर और गंगा जी के समान मनोहर दिखाई देने वाले। 2. सैकत :-वि० [सिकताः सन्त्यत्र अण्] रेतीला, कंकरीला, रेतीली भूमि वाला।
मन्दाकिनी सैकत वेदिकाभिः सा कन्दुकैः कृत्रिम पुत्रकैश्च। 1/29 कभी तो गंगाजी के बलुए तट पर वेदियों बनाती थीं, कभी गेंद खेलती थीं और कभी गुड़ियाँ बना-बनाकर सजाती थीं। सा चक्रवाकांकित सैकतायास्त्रिस्रोतसः कान्ति मतीत्यतस्थौ। 7/15 उनके रूप के आगे उजली धारा वाली उन गंगाजी की शोभा फीकी पड़ गई, जिनके तीर पर बालू में चकवे बैठे हों।
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