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कुमारसंभव
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संस्कार पूतेन वरं वरेण्यं वधूं सुख ग्राह्य निबन्धनेन। 7/90 संस्कृत में तो उन्होंने वर की और सरलता से समझ में आने वाली प्राकृत भाषा में उन्होंने वधू की प्रशंसा की।
पत्र
1. पत्र :-[पत्+ष्ट्रन्] वृक्ष का पत्ता, फूल की पत्ती।
मदोद्धाताः प्रत्यनिला: विचेरुर्वनस्थलीमर्मर पत्रमोक्षाः। 3/31 वे पवन से झड़े हुए सूखे पत्तों से मर्मर करती हुई, वन की भूमि पर इधर-उधर दौड़ते फिर रहे थे। स्वेदोद्गमः किं पुरुषांगनानांचक्रे पदं पत्रविशेषकेषु। 3/33 किन्नरियों के मुख पर चीती हुई चित्रकारी पर पसीना आने लगा। लीलाकमल पत्राणि गणयामास पार्वती। 6/84 पार्वती जी खिलौने के कमल के पत्ते गिन रहीं थीं। कर्णावसक्त मल दन्त पत्रं माता तदीयं मुखमुन्नमय। 7/23 वह मुखड़ा ऊपर उठाया, जिसके दोनों ओर कानों में सुन्दर कर्ण-फूल झूल रहे
थे।
2. पल्लव :-[पल्+क्विप्=पल्, लू+अप्-लव, पल चासौ लवश्च कर्मधरयसास]
पत्ता, पत्ती। असूत सद्यः कुसुमान्यशोकः स्कन्धात्प्रभृत्येव सपल्लवानि 3/26 अशोक का वृक्ष भी तत्काल नीचे से ऊपर तक फूल-पत्ते से लद गया। नव पल्लवसंस्तरे यथा रचयिष्यामि तनुं विभावसौ। 4/34 चिता की आग में उसी प्रकार लेट रहूँगी, जैसे कोई नई-नई कोपलों से सजी हुई सेज पर जा सोवे। हेम पल्लवविभंग संस्तरानन्वभूत्सुरतमर्दनक्षमान्। 8/22 वहाँ सुनहरे पत्तों से बिछी हुई शय्या पर उन्होंने एक रात संभोग किया। सिंहकेसर सयसु भूभृतां पल्लवप्रसविषु दुमेषु द्रुमेषु च। 8/46 हिमालय के सिंहों के लाल-लाल केसरों को, नये-नये पत्तों से लदे हुए वृक्षों
को। 3. प्रवाल :-[प्र+व [ब] ल्+णिच्+अच्] कोंपल, अंकुर, किसलय।
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