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कालिदास पर्याय कोश तां हंस मालाः शरदीव गंगा महौषधिंनक्तमिवात्मभासः। 1/30 जैसे शरत ऋत के आ जाने पर गंगा जी में हंस आ जाते हैं या जैसे अपने आप चमकने वाली जड़ी बूटियों में रात को चमक आ जाती है। यत्र स्फटिक हर्येषु नक्त मापान भूमिषु। 6/42 स्फटिक के भवनों में सजे हुए मदिरालय पर रात को जब तारों की परछाई पड़ती थी। यत्रौषधि प्रकाशेन नक्तं दर्शितं संचराः। 6/43 रात को चमकने वाली जड़ी बूटियाँ ऐसा प्रकाश देती थीं। निशा :-रात्रि, रात। ज्वलन्मणि शिखाश्चैनं वासुकि प्रमुखा निशि। 2/38 चमकते हुए मणि के मन वाले वासुकि आदि रात को। मुखेन स पद्मसुगन्धिना निशि प्रवेपमानाधर पत्रशोभिना। 5/27 रातों में जल के ऊपर पार्वतीजी का मुँह भर दिखाई पड़ता था। जाड़े से उनके
ओंठ काँपते थे और उनकी सांस से कमल की गंध के समान जो सुगन्ध निकल रही थी, उसकी गमक चारों ओर फैल जाती थी। त्रिभागशेषासु निशासु च क्षणं निमील्य नेत्रे सहसा व्यबुध्यत्। 5/57 रात के पहले ही पहर में क्षणभर के लिए आँख लगी नहीं कि बिना बात के ये चौंककर बरबराती हुई जाग उठती थीं। लोक एषतिमिरौधवेष्टितो गर्भवास इववर्तते निशि। 8/56 इस रात के समय सारा संसार इस प्रकार अँधेरे में घिर गया है, जैसे गर्भ की झिल्ली में लिपटा हुआ बालक पड़ा हो। मन्दरान्त मूर्तिना निशा लक्ष्यते शशभृता सतारका। 8/59 इसलिए इस समय मन्दराचल के पीछे छिपे हुए चन्द्रमा इस तारों वाली रात में ठीक ऐसे लगते हैं। उन्नतेषु शशिनः प्रभा स्थिता निम्नसंश्रयपरं निशातमः। 8/66 पार्वती की चोटियों पर तो चाँदनी फैल गई है, पर घाटियों और खड्डों में अभी
अँधेरा बना हुआ है। 5. प्रदोष :-रात्रि, रात।
शशिन इव दिवातनस्य लेखा किरणपरिक्षतधूसरा प्रदोषम्। 4/46
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