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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 577 2. वीची :-स्त्री० [वयति जलं तटे वर्द्धयतीति । वे + 'वे जो डिच्च' इति ईचि, स च डित] तरंग, लहर। आप्लुतास्तीर मन्दारकुसुमोत्किरवीचिषु। 6/5 जो अपने तीर पर गिरे हुए कल्पवृक्ष के फूलों को, अपनी लहरों पर उछालती चलती है। एकपिंगलगिरि 1. एकपिंगलगिरि :-कैलास। एक पिंगलगिरौ जगद्गुरुर्निर्विवेश विशदा: शशिप्रभाः। 8/24 कुबेर की राजधानी कैलास पर रहकर शंकर जी ने उजली चाँदनी का भरपूर आनंद लूटा। 2. कुबेर :-पुं० [कुत्सितं बे [वे] रं शरीरं यस्य सः] कैलास। तावद्भवस्यापि कुबेर शैले तत्पूर्वपाणिग्रहणानुरूपम्। 7/30 उसी समय कैलाश पर्वत पर भी वे सामग्रियाँ रख दी, जो उनके पहले विवाह में काम आई थीं। 3. कैलास :-पुं० [के जले लासो दीप्तिरस्य -केलास+अण] कैलास। तद्भक्तिसंक्षिप्तबृहत्प्रमाणमारुह्य कैलासमिव प्रतस्थे। 7/37 मानो शंकरजी में भक्ति के कारण कैलास ने ही अपने बड़े रूप को छोटा बना लिया हो। औषधिपति 1. इन्दु :-[उनति क्लेदयति चन्द्रिकया भुवनम्-इन्द्र+उ आदेरिच्च] चन्द्रमा। बालेन्दुवक्त्राण्य विकास भावाद्बभुः पलाशान्यतिलोहितानि। 3/29 वसन्त के आते ही दूज के चन्द्रमा के समान टेढ़े, अत्यंत लाल-लाल अधखिले हुए टेसू के फूल। अथ मौलिगतस्येन्दोर्विशदैर्दशनांशुभिः। 6/25 अपनी मन्द हँसी के कारण चमकते हुए दाँतों की दमक से, सिर पर बैठे हुए बाल चन्द्रमा की। पश्य पार्वति नवेन्दु रश्मिभिर्भिन्नसान्द्रतिमिरं नभस्तलम्। 8/64 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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