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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 576 कालिदास पर्याय कोश 5. शिर :-क्ली० [श्रि+श्रूयते स्वाङ्गे शिरः किच्च' इत्यसुन्, स च कित्, धातोः शिरादेशश्च] सिर, मस्तक। पत्युः शिरेश्चन्द्र कलामनेन:स्पृशेति सख्या परिहास पूर्वम्। 7/19 सखी ने ठिठोली करते हुए आशीर्वाद दिया कि भगवान् करे, तुम इन पैरों से अपने पति के सिर की चन्द्रकला को छुओ। पूर्वं महिम्ना स हि तस्य दूरमावर्जितं नात्मशिरो विवेद्। 7/5 पर उसे यह नहीं पता चला कि प्रणाम करने से पहले ही उनकी महिमा से ही, उसका सिर झुक चुका था। 6. शेखर :-पुं० [शिखि गतौ+बाहुलकाद् अर प्रत्ययेन साधुः] सिर। कपालि वा स्यसादथवेन्दु शेखरं न विश्वमूर्तेरवधार्यते वपुः। 5/78 संसार में जितने रूप दिखई देते हैं, वे सब उन्हीं के होते हैं, चाहे गले में खोपड़ियों की माला पहने हुए हों या माथे पर चन्द्रमा सजाये हुए हों। बभूव भस्मैव सिताङ्गरागः कपालमेवामल शेखरश्री:17/32 उनके शरीर पर पुती हुई चिता की भस्म उजला अंगराग बन गई, कपाल ही गले के सुन्दर आभूषण बन गए। उद्यान 1. उद्यान :-[उद्+या+ल्युट्] उद्यान, उपवन। उद्यान पाल सामान्य मृतवस्तमुपासते। 2/36 छहों ऋतुएँ अपने समय का विचार छोड़कर एक साथ फुलवारी की मालिनों के समान। 2. उपवन :- क्ली० [उपमितं वनेन] उद्यान। यस्य चोपवनं बाह्यं गन्धवद्गन्धमादनम्। 6/46 गन्धमादन नाम का सुगंधित पर्वत ही उस नगर का बाहर का उपवन था। उर्मि 1. उर्मि :-लहर, तरंग। अच्छिन्नामल संतानाः समुद्रोर्म्य निवारिताः। 6/69 जैसे आपके यहाँ से निकलती हुई, निरन्तर बढ़ती हुई और समुद्र की लहरों से भी टक्कर लेने वाली निर्मल नदियाँ। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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