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कालिदास पर्याय कोश
कुवलयति गवाक्षां लोचनैरंगनानाम्। 11/93 सुंदर स्त्रियों की आँखें झरोंखों में कमल के समान दिखाई पड़ रही थीं। तिरस्क्रियन्ते कृमितंतुजालैर्विच्छिन्न धूम प्रसरा गवाक्षाः। 16/20 न कहीं से अगरूका धुआँ ही निकलता है, अब वे झरोखे मकड़ियों के जालों से ढक गए हैं। जाल :-[जल्+ण] गवाक्ष, झिलमिली, खिड़की। प्रासाद जालैर्जलवेणिरभ्यां रेवां यदि प्रेक्षितुमस्ति कामः। 6/43 तुम यदि राजभावन के झरोखों से उस सुंदर लहरों वाली नर्मदा का मनोहर दृश्य देखना चाहती हो। ततस्तदालोकनतत्पराणां सौधेषु चामीकरजालवत्सु। 7/5 उनको देखने के लिए अपने भवनों के झरोखों की ओर दौड़ीं। जालान्तर प्रेषित दृष्टिरन्या प्रस्थान भिन्नां न बबन्ध नीवीम्। 7/9 एक और स्त्री झरोखे में आँख लगाए खड़ी थी, उसका नाड़ा खुल गया था पर
उसे बाँधने की सुध ही उसे नहीं थी। 3. वातायन :-[वा+क्त+अयनम्] खिड़की, झरोखा।
प्रासादवातायनसंश्रितानां नेत्रोत्सवं पुष्पपुरांगनानाम्। 6/24 वहाँ की स्त्रियाँ झरोंखों में बैठकर तुम्हे देखेंगी और तुम्हारी सुंदरता देखकर उनकी आँखों का सुख मिलेगा। प्रसादवातायनदृश्यवीचिः प्रबोधयत्यर्णव एव सुप्तम्। 6/56 उसकी लहरें राजभावन से स्पष्ट दिखाई देती हैं, जब ये अपने राजभवन में सोते हैं, तब वह समुद्र ही इन्हें प्रातः जगा देता है। तथैववातायनसंनिकर्ष ययौ शलाकामपरा वहती। 7/8 वह सलाई लिए हुए ही झरोखे की ओर दौड़ पड़ी। प्रासाद वातायन दृश्यबंधैः साकेतनार्योऽञ्जलिभिः प्रणेमुः। 14/13 भवनों के झरोखों में हाथ बाँधे दिखाई पड़ने वाली अयोध्या की महिलाओं ने हाथ जोड़कर उनको प्रणाम किया।
गुहा
1. कुक्ष :- [कुष्+स] पेट, गुफा, गुहा।
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