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रघुवंश
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अतिशस्त्रनखन्यासः शैलरुग्ण मतंगजः। 12/73 अपने नखों से ऐसे भयंकर घाव करते थे कि शस्त्रों से भी वैसे घाव नहीं हो
सकते थे और लड़ाकू हाथियों के सिरों पर बड़ी चट्टाने पटक-पटककर। 11. मत्तेभ :-[मद्+क्त एभ्] मदवाला भीषण हाथी।
तुल्य गंधिषु मत्तेभकटेषु फलरेणवः। 4/47 हाथियों के उन गालों से चिपक गए, जहाँ उन्हीं के गंध जैसी मद की गंध
निकल रही थी। 12. मातंग :-[मतङ्गस्य मुनरेयम् अण्] हाथी।
सरलासक्त मातंगग्रैवेय स्फुरितत्विषः। 4/75 हाथियों के गले में जो साँकलें पड़ी थीं, वे रात को चमकने वाली बूटियों के प्रकाश से चमचमा उठती थीं। मतंगशापाद वलेप मूला दवाप्तवानस्मि मातंगजत्वम्। 5/53 मैंने अभिमान में आकर मतंग ऋषि का अपमान किया था, उन्हीं के शाप से मैं हाथी हो गया। मातंगनः सहसोत्पतद् भिभिन्नान्द्विधा पश्य समुद्रफेनान्। 13/11
इन मगरमच्छों के अचानक उठने से समुद्र की फटी हुई फेन को तो देखो। 13. वारण :-[वृ+णिच्+ल्युट्] हाथी।
जयश्रीरन्तरा वेदिमत्तवारणयोरिव। 12/93 विजयश्री की दशा वैसी ही हो गई, जैसे लड़ते हुए मतवाले हाथियों के बीच की
दीवाल की है। 14. वासिता सख:-[वास्+क्त+टाप्+सख:] हाथी।
अभ्यपद्यत स वासितासख: पुष्पिता: कमलिनीरिव द्विपाः। 19/11 हाथी जैसे खिली हुई कमलिनी की गंध से भरे हुए सरोवर में हथिनियों के साथ
पैठता है। 15. स्तम्बरमा :-[स्तम्बे वृक्षादीनां काण्डे गुल्मे गुच्छे वा रमते रम्+अच्] हाथी। शय्यां जहत्युभयपक्ष विनीत निद्राः स्तम्बेरमा मुखरशृंखल कर्षिणस्ते।
5/72 तुम्हारी सेना के हाथी, दोनों ओर करबटें बदलकर खनखनाती हुई साँकल को खींचते हुए उठ खड़े हुए हैं।
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