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कालिदास पर्याय कोश सममेव समाक्रांतं द्वयं द्विरदगामिना। 4/4 हाथी के समान मस्त चाल से चलने वाले राजा रघु ने दोनों पर। अंकुशं द्विरदस्येव यन्ता गंभीरवेदिनः। 4/39 जैसे मतवाले हाथी के माथे में हाथीवान अंकुश गड़ाता है। स तीर्वाकपिशां सैन्यैर्बद्ध द्विरद सेतुभिः। 4/38 वहाँ से चलकर रघु ने हाथियों का पुल बनाकर अपनी पूरी सेना को कपिशा नदी के पार कर दिया। तत्र स द्विरदबंहित शंकी शब्दपातिन मिषं विससर्ज। 9/73 इन्होंने समझा कि यह कोई हाथी है और उन्होंने झट शब्द-भेदी बाण चला ही तो
दिया। 9. नाग :-[नाग+अण] हाथी
असूयमेव तन्नागाः सप्तधैव प्रसुनुवुः। 4/23 रघु को हाथियों ने भी रीस के मारे अपनी सूंड़ के नथुनों से, दोनों कपोलों से, कमर से और दोनों आँखों से मद बहाने लगे। भेजे भिन्नकटै गैरन्यानुपरुरोध यैः। 4/83 उन्हीं हाथियों को उसने इंद्र से भी अधिक पराक्रमी रघु को भेंट में दे दिया। तस्यैक नागस्य कपोल भित्त्योर्जलावगाह क्षणमात्र शान्ता। 5/47 यद्यपि नदी में नहाने से उस हाथी के माथे का सब मद धुल चुका था। विनीतनागः किल सूत्रकारैन्द्रं पदं भूमिगतोऽपि भुक्ते। 6/27 हाथियों की विद्या के बड़े-बड़े गुणी लोग इनके हाथियों को सिखाते हैं, ये पृथ्वी पर रहते हुए भी इन्द्र ही समझे जाते हैं। सा केतुमालो पवना बृहद्भिर्विहारशैलानुगतेव नागैः। 16/26 उसका ध्वजाओं वाला भाग लता वाले उपवनों जैसे लग रहा था, बड़े-बड़े हाथी बनावटी पर्वतों जैसे जान पड़ते थे। सा मंदुरासंश्रयिभिस्तुरंगैः शालाविधिस्तंभगतैश्च नागैः। 16/41 उसके घुड़साल में घोड़े बँधे हुए थे, हथसारों के खंभों से हाथी बँधे हुए थे। क्रममाणश्चकार द्यां नागेनैरावतौजसा। 17/32
राजा अतिथि जब ऐरावत के समान बलवान हाथी पर चढ़कर। 10. मतंगज :-[मतङ्ग जन्+ज्] हाथी।
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