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कालिदास पर्याय कोश वन्येतरानेकपदर्शनेन पुनर्दिदीपे मददुर्दिनश्रीः। 5/47 सेना के हाथियों को देखकर वह बलवान हाथी क्रोध से तमतमा उठा और उसके
माथे से फिर धुआँधार मद बरसने लगा। 2. करि :-[कर+इनि] हाथी।
करीव सिक्तं पृषतैः पयोमुचां शुचि व्यपाये वनराजि पल्वलम्। 3/3 जैसे गर्मी के अंत में पहली बार वर्षा होने से जंगल के छोटे-छोटे तालों की मिट्टी सोंधी हो जाती है और हाथी उसे बार-बार सूंघते हैं। बभूव तेनातिरां सुदुः सहः कटप्रभदैन करीव पार्थिवः। 3/37 जैसे मद बहने के कारण हाथी प्रचंड हो जाता है, वैसे ही प्रतापी रघु को सहायता से दिलीप भी इतने शक्तिशाली हो गए कि उनके शत्रु उनसे काँपने लगे। नास्त्रसत्करिणां ग्रैवं त्रिपदीछेदिनामपि। 4/48 जिनमें बंधे हुए रस्सों को वे हाथीभी न तोड़ सके, जो पैर के रस्सों को झटके से तोड़ डालते थे। कटेषु करिणां पेतुः पुनांगेभ्यः शिलीमुखाः। 4/57 हाथियों के कपोलों से टपकते हुए मदकी गंध नागकेसर के फूलों पर बैठे हुए भँवरों को मिली। रोधांसि निजत्नवपातमग्नः करीव वन्यः परुष ररास। 16/18 तट को तोड़ता हुआ ऐसे गरजने लगा, जैसे गड्ढे में पड़ा हुआ कोई हाथी
चिंग्घाड़ रहा हो। 3. कलभ :-[कल्+अभच्, करेण शुण्डयाभाति भ+क रस्य लत्वम्-तारा०]
हाथी, हाथी का बच्चा। महोक्षतां वत्सतरः स्पृशन्निव द्विपेन्द्रभावं कलभः श्रयन्निव। 3/32 जैसे गाय का बछड़ा बड़ा हो कर साँड़ हो जाता है और हाथी का बच्चा बढ़कर गजराज हो जाता है। दृष्टो हि वृण्वन्कलभप्रमाणोऽप्याशाः पुरोवातमवाप्य मेघः। 18/32 हाथी के बच्चे के समान छोटा दिखाई देने वाला बादल भी पुरवा पवन का
सहारा पाकर चारों दिशाओं में फैल जाता है। 4. कुंजर :-[कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति-कुञ्ज+र] हाथी।
विस्तारितः कुंजर कर्ण तालैर्ने क्रमेणो पुरुरोध सूर्यम्। 7/39
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