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रघुवंश
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नामांकरावण शरांकित केतु यष्टिर्मूर्ध्वं रथं हरिसहस्त्र युजं निनाय। 12/103 मातलि अपना सहस्रों घोड़ों वाला रथ लेकर स्वर्ग में चला गया, उस रथ की ध्वजा पर अभी तक रावण के नाम खुदे हुए बाणों के चिह्न पड़े हुए थे। अथाभिषेकं रघुवंश केतो: प्रारब्ध मानन्द जलैर्जनन्योः। 14/7 जिस राज्याभिषेक का आरंभ माताओं के हर्ष भरे आँसुओं से हुआ था। दिशः पपात पत्त्रेण वेग निष्कंप केतुना। 15/48 काँपती हई ध्वजा वाले पुष्पक विमान पर चढ़कर राम यह देखने के लिए सब
दिशाओं में चक्कर काटने लगे। 2. ध्वज :-[ध्वज्+अच्] ध्वज, झण्डा, पताका, वैजयन्ती।
ते रेखाध्वज कुलिशात पत्र चिह्न सम्राजश्चरणयुगं प्रसादलभ्यम्। 4/88 जाते समय उन राजाओं ने रघु के उन चरणों में झुककर प्रणाम किया, जिन पर ध्वजा, वज्र और छत्र आदि की रेखाएँ बनी हुई थीं। कुशेशयाताम्र तलेन कश्चित्करेण रेखाध्वज लांछनेन। 6/18 जिनकी हथेली कमल के समान लाल थी और जिस पर ध्वजा की रेखाएँ बनी हुई थीं। मत्स्यध्वजा वायुवशाद्विदीर्णैर्मुखैः प्रवृद्धध्वजिनीरजांसि। 7/40 वायु के कारण सेना की मछली के आकार वाली झंडियों के मुँह खुल गये थे। उनमें जल धूल घुस रही थी। तस्य जातु मरुतः प्रतीपगा वर्त्मसु ध्वज तरु प्रमाथिनः। 11/58 वैसे ही एक दिन मार्ग में सेना के ध्वजा रूपी वृक्षों को झकझोरने वाले वायु ने
सारी सेना को व्याकुल कर दिया। 3. पताका :-[पत्यते ज्ञायते कस्य चिद्भेदोऽनया-पत्+आ+टाप] झण्डा, ध्वज।
पुरंदर श्रीः पुरमुत्पताकं प्रविश्य पौरेरभिनन्द्यमानः। 2/74 इन्द्र के समान संपत्तिशाली राजा दिलीप ने प्रजा का आदर पाकर उस अयोध्या
नगरी में प्रवेश किया, जिसमें उनके स्वागत के लिए झंडे ऊँचे कर दिए गए थे। 4. वैजयंती :-[वि+जि+अच्-वैजयन्त+अण्+ङीप्] झंडा, पताका।
संचारिते चागुरुसारयोनौ धूपे समुत्सर्पति वैजयंतीः। 6/8 अगर के सार से बनाई हुई धूपबत्तियों का धुआँ चारों ओर उड़ता हुआ फहराती हुई झंडियों तक चढ़ गया।
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