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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 60 कालिदास पर्याय कोश स्कंधावलग्नोद्धृत पद्मिनीकः करेणुभिर्वन्यइव द्विपेन्द्रः। 16/68 जैसे कमलिनियों को उखाड़ कर कंधे पर लटकाए हुए हाथी, हथिनियों के साथ जल क्रीड़ा करता है। 2. वासिता :-[वास्+क्त+टाप्] हथिनी। अभ्य पद्यत स वासिता सख: पुष्पिता: कमलिनी रिवद्विपः। 19/11 हाथी जैसे खिली हुई कमलिनियों की गंध से भरे सरोवर में हथिनियों के साथ पैठता है। कर्ण 1. कर्ण :-[कर्ण्यते आकर्ण्यते अनेन-कर्ण+अप्] कान। तद्गुणैः कर्णमागत्य चापलाय प्रचोदितः। 1/19 ये गुण जब मेरे कान में पड़े, तब इन्होंने ही मुझे यह ढिठाई करने को उकसाया। कामं कर्णांत विश्रांते विशाले तस्य लोचने। 4/13 यद्यपि रघु के नेत्र कानों तक फैले हुए और बहुत बड़े-बड़े थे। तं कर्णभूषण निपीडित पीव रांसं शय्योत्तरच्छदविमर्द कृशांगरागम्। 5/65 एक करवट सोने के कारण अज के भरे हुए कंधों पर कुंडल के दबने से उसका चिह्न पड़ गया और बिछौने की रगड़ से उनके शरीर पर लगा हुआ अंगराग भी पुछ गया था। कपोल संसर्पितया य एषां व्रजन्ति कर्णक्षण चामर त्वम्। 13/11 इनके गालों पर क्षण भर के लिए लगी हुई यह फेन ऐसी दिखाई देती है मानो इनके कानों पर चंवर टंगे हुए हों। च्युतं न कर्णादपि कामिनीनां शिरीषपुष्पं सहसापपात्। 16/48 स्त्रियों के कान पर रखे हुए सिरस के फूल कान पर से गिरते भी थे, तो सहसा पृथ्वी पर नहीं गिर पाते थे। 2. श्रवण :-[श्रु+ल्युट] कान। श्रवणकटु नृपाणामेक वाक्यं विवब्रुः। 6/85 ज्यों-ज्यों ये सब बातें सुनते जा रहे थे, त्यों-त्यों मन में कुढ़ते चले जा रहे थे। अरुण राग निषेधिभिरंशुकैः श्रवणलब्धपदैश्च यवांकुरैः। 9/43 प्रात:काल की ललाई से अधिक लाल वस्त्रों ने, कान पर रखे हुए जौ के अंकुरों ने। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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