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कालिदास पर्याय कोश
4. हरि :-[ह + इन् + अच्] लंगूर, बंदर।
मुमूर्च्छ सख्यं रामस्य समान व्यसने हरौ। 12/57 इस वानर सुग्रीव के भी राज्य और स्त्री को बालि ने छीन लिया था, इसलिए उसने स्त्री से बिछुड़े हुए राम से शीघ्र मित्रता कर ली। सप्रतस्थेऽरिनाशाय हरिसैन्यैरनु दुतः। 12/67 वे वानरों की अपार सेना लेकर शत्रु का संहार करने लगे। समौलरक्षो हरिभिः ससैन्यस्तूर्य स्वनानन्दित पौर वर्गः। 14/10 वृद्ध मंत्रियों, राक्षसों और वानरों को साथ लेकर राम ने अपनी सेना के साथ उस अयोध्या में प्रवेश किया, जहाँ के निवासी तुरही आदि बाजों को सुन-सुनकर बड़े प्रसन्न हो रहे थे। जगृहुस्तस्य चितज्ञाः पदवी हरिराक्षसाः। 15/99 राम के मन की बात जानने वाले वानर और राक्षस भी उनके पीछे-पीछे चले।
हार
1. आवलि :-[आ + वल् + इन् पक्षे ङीष्] हार, रत्नमाला।
मन्दाकिनी भाति नगोपकण्ठे मुक्तावली कण्ठगतेव भूमेः। 13/48 चित्रकूट के पर्वत के नीचे बहती हुई मंदाकिनी ऐसी जान पड़ रही है, मानो
पृथ्वी रूपी नायिका के गले में मोतियों की माला पड़ी हुई हो। 2. माला :-हार, स्रज, गजरा।
अथ प्रजानामधिपः प्रभाते जायाप्रतिग्राहित गन्धमाल्याम्। 2/1 दूसरे दिन प्रातः काल रानी सुदक्षिणा ने पहले फूल-माला चन्दन लेकर। एवं त्योक्ते तमवेक्ष्य किंचिद्विस्त्रं सिदूर्वाङ्कमधूकमाला। 6/25 सुनंदा की बातें सुनकर इंदुमती ने तनिक सी आँख उठाकर राजा को देखा, उसके हाथ की दूब में गुथी हुई महुए की माला कुछ सरक गई। स स्वयं प्रहतपुष्करः कृती लोलमाल्यवलयो हरन्मनः। 19/14 जब नर्तकियों के नाचते समय वह स्वयं मृदंग बजाने लगता था, तब उसके गले की माला हिल उठती थी और नर्तकियाँ सुध-बुध खोकर नाचना भी भूल जाती
थीं।
3. स्रज :-[स्रज्यते :-स्रज् + क्विन्, नि०] गजरा, माला, हार।
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