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कालिदास पर्याय कोश
रावण को सैन्य रथ पर और राम को पैदल देखकर इंद्र ने । तस्य प्रयातस्य वरुथिनीनां पीडामपर्याप्तवतीव सोढुम् | 16 / 28 चलते समय कुश की सेना का भार पृथ्वी नहीं संभाल सकी। 8. वाहिनी : - [ वाहो अस्त्यस्याः इनि ङीप् ] सेना ।
प्रत्यग्रहीत्पार्थिव वाहिनीं तां भागीरथीं शोण इवोत्तरंग : | 7/36
स्वयं उस सेना को रोककर उसी प्रकार खड़े हो गए, जैसे बाढ़ के दिनों में ऊँची तरंगों वाला शोण नद गंगाजी की धारा को रोक लेता है।
आशिषं प्रयुयुजे न वाहिनीं सा हि रक्षणविधौ तयोः क्षमा । 11/6
राजा ने उनकी सहायता के लिए अपना आशीर्वाद ही दिया, सेना नहीं। क्योंकि उनका आशीर्वाद ही उनकी रक्षा के लिए पर्याप्त था ।
तेजसः सपदि राशिरुत्थितः प्रादुरास किल वाहिनीमुखे । 11 /63
इसी बीच अचानक एक ऐसा प्रकाशपुंज सेना के आगे उठता दिखाई दिया, जिसे देखकर सब सैनिकों की आँखें चौंधिया गईं।
असौ पुरस्कृत्य गुरुं पदातिः पश्चादवस्थापित वाहिनीकः । 13/66
देखो इनके आगे वशिष्ठजी चल रहे हैं और पीछे-पीछे सेना चली आ रही है।
9. सेना :- [ सि + न + टाप्, सह इनेन प्रभुणा वा ] फौज़ ।
सेना परिच्छदस्तस्य द्वयमेवार्थ साधनम् । 1/19
राजा दिलीप के पास भी बड़ी भारी सेना थी, पर वह सेना केवल शोभा के लिए ही थी। उससे वे कोई काम नहीं लेते थे ।
अनुभावविशेषात्तु सेना परिवृताविव। 1/37
उससे जान पड़ता था, मानो साथ में बड़ी भारी सेना चली जा रही हो ।
स सेना महतीं कर्षन्पूर्व सागरगामिनीम् । 4/32
अपनी विशाल सेना के साथ जब वे पूर्वी समुद्र की ओर जा रहे थे । विलङ्घिता धोरणतीव्रयतनाः सेना गजेन्द्रा विमुखा बभूवुः । 5/48 तब सेना के हाथियों ने हाथीवानों के बार-बार रोकने पर भी इधर-उधर भाग चले ।
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सेना रथोदारगृहा प्रयाणे तस्याभवज्जंगम राजधानी । 16 / 26 यात्रा के समय चलती हुई कुश की सेना चलती-फिरती राजधानी के समान लगती थी, क्योंकि उसके रथ ऊँची-ऊँची अटारियों जैसे लग रहे थे । सा यत्र सेना ददृशे नृपस्य तत्रैव सामग्य्रमूर्ति चकार । 16 / 29