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रघुवंश
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20. सविता :-[सू + तृच] सूर्य।
दिनान्ते निहितं तेजः सवित्रेव हुताशनः। 4/1 जैसे साँझ के सूर्य से तेज लेकर आग चमक उठती है। गगनमश्वखुरोद्धतरेणु भिसविता स वितानमिवाकरोत्। 9/50 तब उनके घोड़ों की टापों से इतनी धूल उठी, कि सूर्य के सामने आकाश में चँदोवा सा तन गया। अपुनात्सवितेवोभौ मार्गावुत्तर दक्षिणौ। 17/2 जैसे तेजस्वी सूर्य अपने प्रकाश से उत्तर और दक्षिण दोनों दिशाओं को पवित्र
कर देता है। 21. सूर्य :-[सरति आकाशे सूर्यः-सृ + क्यप्, नि०] सूरज ।
क्व सूर्य प्रभवो वंशः क्व चाल्पविषया मतिः। 1/2 कहाँ तो सूर्य से उत्पन्न हुआ वह वंश, कहाँ मोटी बुद्धि वाला मैं। ग्रहैस्ततः पञ्चभिरुच्चसंश्ररसूर्यगैः सूचितभाग्य संपदम्। 3/13 जिसके सौभाग्यशाली होने की सूचना वे पाँच शुभ ग्रह दे रहे थे, जो उस समय उच्च स्थान पर थे और साथ में सूर्य के न होने से फल देने में समर्थ थे। सूर्ये तपत्यावरणाय दृष्टे: कल्पेत लोकस्य कथं तमित्रा। 5/13 जैसे सूर्य के रहते हुए संसार में अँधेरा नहीं ठहर पाता। सूर्यांशुसंपर्क समृद्ध रागैर्व्यज्यन्त एते मणिभिः फणस्थैः। 13/12 पर जब सूर्य की किरणों से इनकी मणियाँ चमक जाती हैं, तब ये साँप पहचान में आ जाते हैं। साहं तपः सूर्यनिविष्ट दृष्टिरूर्ध्वं प्रसूतेश्चरितुं यतिष्ये। 14/66 पर पुत्र हो जाने पर मैं सूर्य में दृष्टि बाँधकर ऐसी तपस्या करूँगी कि। ऋचे वोदर्चिषं सूर्यं रामं मुनिरुपस्थितः। 15/76 वाल्मीकि जी लव, कुश और सीताजी को साथ लेकर सूर्य के समान राम के आगे उपस्थित हुए। विडम्बयत्यस्तनिमग्नसूर्यं दिनान्तमुग्रानिल भिन्नमेघम्। 16/11
जैसे सूर्यास्त के समय की वह संध्या, जिसमें वायु के वेग से इधर-उधर छितराए हुए बादल दिखाई देते हों। समग्रशक्तौ त्वयि सूर्यवंश्ये सति प्रपन्ना करुणामवस्थाम्। 16/10
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