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कालिदास पर्याय कोश
अगस्त्य चिह्ना दयनात्समीपं दिगुत्तरा भास्वति संनिवृत्ते । 16/44
मानो दक्षिण दिशा से सूर्य के लौट आने की प्रसन्नता में उत्तर दिशा ने आनंद के ठंडे आँसुओं के समान ।
18. रवि :- [ रु+ इ] सूर्य ।
दिशि मन्दायते तेजो दक्षिणस्यां रवेरपि । 4/49
दक्षिण दिशा में महाप्रतापी सूर्य का तेज भी मंद पड़ जाता है।
दिन मुखानि रविर्हिमनिग्रहैर्विमलयन्मलयं नगमत्यजत् । 9/25
सर्दी दूर करके, प्रातः काल का पाला हटाकर उसे और भी अधिक चमकाते हुए, सूर्य ने मलय पर्वत से विदा ली।
न खलु तावदशेषमपो हितुं रविरलं विरलं कृतवाह्निमम् । 9/32
अभी वह ठंड भली प्रकार दूर नहीं हुई थी, पर हाँ सूर्य ने कुछ जाड़ा कम अवश्य कर दिया था ।
लक्ष्यते स्म तदनन्तरं रविर्बद्ध भीमपरिवेषमण्डलः । 11/59
उससे सूर्य के चारों ओर एक बड़ा भारी मंडल बन गया और वह ऐसा लगने
लगा।
राजर्षिवंशस्य रविप्रसूतेरुपस्थितः पश्यत कीदृशोऽयम् । 14 / 37
वैसे ही देखो, सूर्यवंशी राजर्षियों के कुल में मेरे कारण कैसा कलंक लग रहा है।
धूमादग्नेः शिखाः पश्चादुदया दंशवो रवेः । 17/34
आग की लपट धुआँ निकलने के पीछे उठती हैं और किरणें सूर्य के उदय होने के पीछे दिखाई देती हैं।
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19. विवस्वत : - [ विशेषेण वस्ते आच्छादयति :- वि + वस् + क्विप् + मतुप् ]
सूर्य ।
नीहार मग्नो दिन पूर्व भाग: किंचित्प्रकाशेन विवस्वतेव । 7/60
जैसे कोहरे के दिन, प्रभात होने का ज्ञान धुंधले सूर्य को देखकर होता है।
उदधेरिव रत्नानि तेजांसीव विवस्वतः । 10/30
जैसे समुद्र के रत्न और सूर्य की किरणें गिनी नहीं जा सकती ।
अदृष्टम भवत्किंचिद्वयभ्रस्येव विवस्वतः । 17/48
जैसे खुले आकाश में सूर्य की किरणों के फैल जाने से कुछ भी छिपा नहीं रह
जाता ।