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रघुवंश 3. प्रधनम् :-[प्र + धा + क्यु] युद्ध, लड़ाई, संग्राम, संघर्ष।
तिष्ठतु प्रधनमेवमप्यहं तुल्यबाहुतरसा जितस्त्वया। 11/77 युद्ध तो पीछे होगा....... मैं समझूगा कि तुम मेरे ही समान बलवान हो और मैं
इतने से ही हार मानकर लौट जाऊँगा। 4. मृध :-[मृध् + क] संग्राम, युद्ध, लड़ाई।
हत्या निवृत्ताय मृधे खरादीन्संरक्षितां त्वामिव लक्ष्मणो मे। 13/65 खरदूषण आदि राक्षसों को युद्ध में मारकर मैं जब लौटा था, उस समय जैसे
लक्ष्मण ने तुम्हें मेरे हाथ सुरक्षित रूप से सौंप दिया था। 5. युद्ध :-[युध + क्त] संग्राम, समर, लड़ाई।
बभूव युद्धं तुमुलं जयैषिणीरधो मुखैरूर्ध्वमुखैश्च पत्रिभिः। 3/57 दोनों भयंकर युद्ध कर रहे थे, रघु और इंद्र दोनों ही अपनी ही जीत चाहते थे। रघु को लक्ष्य बनाकर इंद्र नीचे की ओर अपने बाण चलाते थे और इंद्र को ताक-ताक कर रघु ऊपर बाण चला रहे थे। यन्ता गजस्याभ्यपतद्गजस्थं तुल्य प्रतिद्वन्द्वि बभूव युद्धम्। 7/37 लड़ाई छिड़ गई, रथ वाले रथ वालों से जूझ गए, हाथी-सवार, हाथी-सवारों पर टूट पड़े। इस प्रकार बराबर जोर की लड़ाई होने लगी। निर्ययावथ पौलस्त्यः पुनयुद्धाय मन्दिरात्। 12/83 जब रावण ने सब कांड सुना, तब वह अपने राजभवन से निकल कर रण-भूमि में आया। रण :-[रण् + अप्] संग्राम, समर, युद्ध, लड़ाई। रणक्षितिः शोणित मद्यकुल्या रराज मृत्योरिव पान भूमिः। 7/49 वह युद्ध क्षेत्र मृत्यु देव के उस मदिरालय सा जान पड़ रहा था, जिसमें बहता हुआ रक्त ही, मानो मदिरा हो। दिनकराभिमुखा रणरेणो रुरुधिरे रुधिरेण सुरद्विषाम्। 9/23 दशरथ ने कई बार सूर्य पर छाई हुई युद्ध की धूल राक्षसों के रक्त से सींचसींचकर दबाई है। आत्मानं रणकृतकर्मणां गजानामानृण्यं गतमिव मार्गणैरमंस्त। 9165 मानो अपने बाणों से उन हाथियों का ऋण चुका दिया, जो युद्ध में उनकी सेना में काम आ रहे थे।
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