________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रघुवंश
427
5. व्याघ्र :-[व्याजिघ्रति :-वि + आ + घ्रा + क] बाघ, चीता, सिंह, शेर।
सद्यो हतन्यङ्करभिरत्रदिग्धं व्याप्रैः पदं तेषु निधीयते मे। 16/15 उन्हीं पर मृग मारने वाले बाघ अपने रक्त से सने लाल पैर रखते चलते हैं। सिंह :-[हिंस् + अच्, पृषो०] शेर, सिंह। अलक्षिताभ्युत्पतनो नृपेण प्रसह्य सिंहः किल तां चकर्ष। 2/27 उस समय राजा दिलीप पर्वत की शोभा देख रहे थे, इसलिए उन्हें दिखाई ही नहीं पड़ा कि उस पर सिंह कब झपटा। विस्माययन्वि स्मितमात्मवृत्तौ सिंहोरुसत्त्वं निजगाद सिंहः। 2/33 सिंह के समान पराक्रमी राजा दिलीप बड़े अचंभे में पड़े हुए थे और जब वह सिंह मनुष्य की बोली में बोलने लगा, तब तो उनके आश्चर्य का ठिकाना ही न रहा। व्यापारितः शूलभृता विधाय सिंहत्वमङ्कागत सत्त्ववृत्ति। 2/38
और मेरा पेट भरने के लिए मुझे आज्ञा दे दी, कि यहाँ जो जीव आवे उसे सिंह के स्वभावानुसार मारकर खा जाया करो। तस्मिन्क्षणे पालयितुः प्रजानामुत्पश्यतः सिंहनिपातमुग्रम्। 2/60 राजा दिलीप यह सोच ही रहे थे कि अब सिंह उन पर टूटने ही वाला है कि इतने में ही प्रजा-पालक राजा दिलीप के ऊपर। ददर्श राजा जननीमिव स्वां गामग्रतः प्रस्त्रषिणी न सिंहम्। 2/61 राजा दिलीप देखते क्या हैं कि आगे स्तनों से दूध टपकाती हुई माता के समान नंदिनी खड़ी है और सिंह का कहीं नाम भी नहीं है। गुहाशयानां सिंहानां परिवृत्त्यावलोकितम्। 4/72 सैनिकों के समान ही बलवान सिंह गुफाओं में लेटे-लेटे आँखे घुमाकर रघु की सेना को देख रहे थे। निर्धातोग्रैः कुञ्जलीनाञ्जिधांसुानिर्घोषैः क्षोभयामास सिंहान्। 9/64 बस उन्होंने हाथियों से बैर रखने वाले उन सिंहों को मार डाला, जिनके नुकीले अगले पंजों में अब तक गजमुक्ताएँ उलझी हुई थीं। नखाङ्कशाघात विभिन्नकुम्भाः संरब्धसिंह प्रहृतं वहन्ति। 16/16 उन चित्रित हाथियों के मस्तकों को सिंहों ने सच्चे हाथी का मस्तक समझकर नखों से फाड़ दिया है।
For Private And Personal Use Only