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रघुवंश 5. स्मय :-[स्मि+अच्] अभिमान, घमण्ड, गर्व।
ततो यथाव द्विहिताध्वराय तस्मै स्मया वेशविवर्जिताय। 5/19 ब्रह्मचारी कौत्स ने देखा कि विश्वजित यज्ञ करने पर भी रघु को अभिमान छू नहीं गया।
अविघ्न 1. अविन :-निर्वाध।
अविजमस्तु ते स्थेयाः पितेव धुरि पुत्रिणाम्। 1/91 ईश्वर करे तुम्हें कोई बाधा न हो और जिस प्रकार तुम अपने पिता के योग्य पुत्र हो, वैसे ही तुम्हें भी सुयोग्य पुत्र प्राप्त हो। साध्यम्यहमविघ्नमस्तु ते देवकार्यमुप पादयिष्यतः। 11/91 मैं अब जाता हूँ। आप देवताओं के जो कार्य करने के लिए आए हैं, वह बिना
विघ्न के पूरा हो। 2. अनघ :-निष्पाप, निरपराध, अक्षत, घात रहित, सुरक्षित।
तदंक शय्याच्युतनाभिनाला कच्चिन्मृगीणामनघा प्रसूतिः। 5/7 हरिणियों के वे छोटे-छोटे बच्चे तो कुशल से हैं न, जिनकी नाभि का नाल
ऋषियों की गोद में ही सूखकर गिरता है। 3. निरातंक :-[नृ+क्विप्, इत्वम्+आतंक] भय से मुक्त।
पुरुषात्युष जीविन्यो निरातंका निरीतयः। 1/63 मेरी प्रजा में कोई भी न तो बरस से कम आयु पाता और न किसी को किसी प्रकार की ईति तथा विपत्ति का डर रहता है।
अश
1. अश्रु :-[नपुं०] [अश्नुते व्याप्नोति नेत्रमदर्शनाय-अश्+क्रुन्] आँसू।
रघुभ्रशं वक्षसि तेन ताडितः पपात भूमौ सह सैनिकाश्रुभिः। 3761 उस वज्र की मार से रघु पृथ्वी पर गिर पड़े। उनके गिरते ही सैनिकों ने रोना-पीटना प्रारंभ कर दिया। श्रुत देह विसर्जनः पितुश्चिरमश्रूणि विमुच्य राघवः। 8/25 अपने पिता के देह त्याग का समाचार सुनकर अग्निहोत्र करने वाले अज बहुत रोए।
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