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रघुवंश
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वशिष्ठस्य गुरोर्मन्त्राः सायकास्तस्य धन्विनः। 17/38 गुरु वशिष्ठ के मन्त्र और धनुषधारी राजा के बाण दोनों ने।
शरव्य 1. लक्ष्य :-[लक्ष् + ण्यत्] देखने के योग्य, दृश्य, अवेक्षणीय, संकेतित, प्राप्य,
उद्देश्य, चिह्न, निशाना। परिचयं चललक्ष्यनिपातने भयोरुषोश्च तदिङ्गितबोधनम्। 9/49 आखेट से चलते हुए लक्ष्य को बेधने का अभ्यास हो जाता है तथा जीवों के भय और क्रोध आदि भावों की पहचान हो जाती है। शरव्य :-[शरवे शरशिक्षायै हितं :-शरु + यत्] निशाना, लक्ष्य। संप्रापुरेवात्मजवानुवृत्त्या र्धिभागैः फलिभिः शरव्यम्। 7/45 उन बाणों में इतना वेग होता था, कि उनका फल लगा हुआ अगला भाग लक्ष्य पर पहुँच ही जाता था। यत्र यावधिपती मखद्विषां तौ शरव्यमकरोत्स नेतरान्। 11/27 उन्हीं दो राक्षसों को लक्ष्य कर बाण मारे, जो उस सेना के सेना नायक थे और जो यज्ञ से घृणा करते थे।
शासन 1. आदेश :-[आ + दिश् + घञ्] हुक्म, आज्ञा, निर्देश, उपदेश, नियम।
आदेशं देशकालज्ञः शिष्यः शासितुरानतः। 1/92 तब बड़ी नम्रता से उन्होंने वशिष्ठ जी से कहा कि हम ऐसा ही करेंगे और यह कहकर उन्होंने और उनकी पत्नी ने गुरुजी से इस व्रत के लिए आज्ञा ली। रामादेशादनुगता सेना तस्यार्थसिद्धये। 15/9
राम की आज्ञा से शत्रुघ्न के साथ जो सेना गई, वह वैसे ही व्यर्थ थी। 2. शासन :-[शास् + ल्युट्] राज्य, प्रभुत्व, सरकार, आज्ञा, आदेश, निदेश।
इति क्षितीशो नवतिं नवाधिकां महाक्रतूनां महनीय शासनः। 3/69 इस प्रकार जिस राजा दिलीप की आज्ञा कोई टाल नहीं सकता था, उन्होंने निन्यानवें यज्ञों की सीढ़ी सी बना ली थी। शशंस सीतापरिदेवनान्तमनुष्ठितं शासनमग्रजाय। 14/83
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