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कालिदास पर्याय कोश इति संतयं शत्रुघ्नं राक्षसस्तज्जिघांसया। 15/19 यह कहकर उसने शत्रुघ्न को मारने के लिए घास उखाड़ने के समान एक भारी पेड़ उखाड़ लिया। ऐन्द्रमस्त्रमुपादाय शत्रुघ्नेन स ताडितः। 15/22
पर शत्रुघ्न ने ऐन्द्र अस्त्र चलाकर उसे चूर-चूर कर दिया। 3. सौमित्र :-[सुमित्रा + अण, इञ् वा] शत्रुघ्न का विशेषण।
सौमित्रेनिशितैर्बाणैरन्तरा शकलीकृतः। 15/20 लवणासुर ने ज्यों ही वह वृक्ष शत्रुघ्न पर फेंका, त्यों ही उन्होंने बीच में ही उसे बाणों से टुकड़े-टुकड़े कर डाला।
शय्या
1. तल्प :-[तल् + पक्] बिस्तरा, सोफा। इति विरचितवाग्भिर्बन्दिपुत्रैः कुमारः सपदि विगतनिद्रस्तल्पमुज्झांचकार।
5/75 वैसे ही चारणों की सुरचित वाणी सुनकर राजकुमार अज की नींद खुल गई और वे शय्या से उठ बैठे। सविस्मयो दाशरथेस्तनूजः प्रोवाच पूर्वार्ध विसृष्टतल्पः। 16/6
उसे देखकर कुश को बड़ा आश्चर्य हुआ, वे शैया पर आधे उठकर उससे बोले। 2. शयन :-[शी + ल्युट्] बिस्तरा, शय्या।
तच्छिष्याध्ययननिवेदितावसानां संविष्टः कुशशयने निशां निनाय। 1/95 रात्रि बीतने पर वशिष्ठजी ने जब अपने शिष्यों को वेद पढ़ाना प्रारंभ किया, तब
उसकी ध्वनि कान में पड़ते ही राजा कुश की चटाई (शय्या) से उठ बैठे। 3. शयनीय :-[शी + अनीयर्] बिस्तरा, शय्या।
गतमाभरण प्रयोजनं परिशून्यं शयनीयमद्य मे। 8/66 मेरा पहनना-ओढ़ना बेकाम हो गया और शय्या भी सूनी हो गई। शय्या :-[शी आधारे क्यप् + टाप्] बिस्तरा, बिछौना। अरिष्टशय्यां परितो विसारिणा सुजन्मनस्तस्य निजेन तेजसा। 3/15 उस भाग्यवान बालक का तेज सेज-कक्ष में चारों ओर इतना छाया हुआ था कि। तदङ्कशय्याच्युतनाभिनाला कच्चिन्मृगीणामनघा प्रसूतिः। 5/7 हरिणियों के वे छोटे-छोटे बच्चे तो कुशल से हैं न, जिनकी नाभि का नाल ऋषियों की गोद रूपी शय्या में ही सूखकर गिरता है।
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