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रघुवंश
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विजय
1. जय :- [ जि + अच्] जीत, विजय, सफलता ।
प्रदक्षिणार्चिर्व्याजने हस्तेनेव जयं ददौ । 4/25
हवन की आग भी दाहिनी ओर घूमती हुई उठ रही थी, मानो अपने हाथ उठा-उठाकर रघु को पहले से ही विजय दे रही हो ।
2. विजय : - [ वि + जि + घञ्] जीत, फतह, जय यात्रा ।
गान्धर्वमादत्स्व यतः प्रयोक्तुर्न चारिहिंसा विजयश्च हस्ते । 5/57
इस गंधर्वास्त्र को ले लीजिए, इसमें यह विशेषता है कि जब आप इसे चलावेंगे,
तब आप शत्रु के प्राण लिए बिना ही उसे जीत लेंगे।
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निदधे विजयाशंसां चापे सीतां च लक्ष्मणे । 12 /44
इन्हें तो हम अकेले अपने धनुष से ही जीत लेंगे, इसलिए उन्होंने सीता की रक्षा का भार लक्ष्मण को सौंप दिया।
-:
विद्युत
1. तडित : - ( स्त्री० ) [ ताडयति अभ्रम्
तड् + इति] बिजली ।
अन्योन्य शोभापरिवृद्धये वां योगस्तडित्तो दयोरिवास्तु । 6 / 65
इसलिए यदि तुम दोनों का विवाह हो जाएगा, तो तुम ऐसी सुन्दर लगोगी; जैसे बादल के साथ बिजली ।
2. विद्युत : - [ विशेषेण द्योतते :- विद्युत् + क्विप्] बिजली, वज्र । प्रावृषेण्यं पयोवाहं विद्युदैरावताविव । 1/36
उस पर बैठे हुए वे दोनों ऐसे जान पड़ते थे, मानो वर्षा के बादल पर ऐरावत और बिजली दोनों चढ़े चले जा रहे हों ।
सहस्त्रधात्मा व्यरुचद्विभक्तः पयोमुचां पंक्तिषु विद्युतेव । 6/5
मानो लक्ष्मी ने अपनी शोभा उन लोगों में उसी प्रकार बाँट दी हो, जैसे बिजली अपनी चमक बादलों में बाँट देती है।
3. शतह्रद :- [ शो + क् + ह्रदम् ] बिजली ।
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शतह्रदमि ज्योतिः प्रभामण्डलमुद्ययौ । 15 / 82
उसमें से बिजली के समान चमकीला एक तेजो मंडल निकला ।
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