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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 381 रघुवंश वापीष्विव स्रवन्तीषु वनेषूपवनेष्विव। 17/64 नदियाँ उनके लिए बावलियों जैसी घरेलू, वन भी उद्यान जैसे सुखकर हो गए। खनिभिः सुषेवे रत्नं क्षेत्रैः सस्यं वनैर्गजान्। 17/66 खानों ने रत्न दिए, खेतों ने अन्न दिया और वनों ने उन्हें हाथी दिए। क्ष्मां लम्भयित्वा क्षमयोपपन्नं वने तपः क्षान्ततरश्चकार। 18/9 अपने पुत्र क्षेमधन्वाको राज सौंप दिया और स्वयं शांत होकर जंगल में तपस्या करने चले गए। 4. विपिन :-[वेपन्ते जनाः अत्र :-वेप् + इनन्, ह्रस्व] जंगल, वन, वाटिका। विपिनानि प्रकाशानि शक्ति मित्त्वाच्चकार सः। 4/31 रघु के पास ऐसे साधन थे कि घने जंगलों में खुले मार्ग बन गए। अप्प जातु रुरो गृहीतवा विपिने पार्श्वचरैरलक्ष्यमाणः। 9/72 एक दिन जंगल में रुरु मृग का पीछा करते हुए, वे अपने साथियों से दूर भटक गए। वन्य 1. आरण्यक :-[अरण्य + वुज] वन संबंधी, वन में उत्पन्न, जंगली। आरण्यकोपात्तफल प्रसूतिः स्तम्बेन नीवार इवावशिष्टः। 5/15 इससे आप जंगल की उस तिन्नी की पौधे की दूंठ जैसे रह गए हैं, जिसके दाने तपस्वियों ने झाड़ लिए हों। 2. वन्य :-[वने भवः यत्] जंगली, जंगल में उगने वाला। नाम धेयानि पृच्छन्तौ वन्यानां मार्गशाखिनाम्। 1/45 उनसे राजा दिलीप और उनकी रानी मार्ग के वनों और वृक्षों का नाम पूछती चलती थी। कल्पविकल्पयामास वन्यामेवास्य संविधाम्। 1/94 उन्होंने राजा के व्रत के योग्य जंगली कंदमूल के भोजन और कुश की चटाई का ही प्रबंध किया था। रक्षापदेशान्मुनि होमधेनोर्वन्यान्विनेष्यन्निव दुष्ट सत्त्वान्। 2/8 जब वे हाथ में धनुष लेकर घूमते थे, तब उन्हें देखकर ऐसा लगता था, मानो नंदिनी की रक्षा के बहाने वे जंगल के दुष्टजीवों को शांत रहने की सीख दे रहे हों। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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