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रघुवंश
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विन्ध्यस्य संस्तम्भयिता महादेनिःशेषपीतोज्झित सिन्धुराजः। 6/61 जिन्होंने विन्ध्याचल को आगे बढ़ने से रोक दिया था और पूरे समुद्र को पीकर फिर मुंह से निकाल दिया था। अनन्यसामान्य कलत्र वृत्तिः पिबत्यसौ पाययते च सिन्धूः। 13/9 देखो ! दूसरे लोग केवल स्त्रियों का अधर पान करते हैं, अपना अधर उन्हें नहीं पिलाते। पर समुद्र इस बात में भी औरों से बढ़ कर है।
अलक
1. अलक :-[अल्+क्वुन्] धुंघराले बाल, जुल्फें, बाल।
रजोभिस्तुरगोत्कीर्णैरस्पृष्टालक वेष्टनौ। 1/42 घोड़ों के खुरों से उठी धूल न तो सुदक्षिणा के बालों को छू पाती थी और न राजा दिलीप की पगड़ी को। अलकेषु चमूरेणुश्चूर्ण प्रतिनिधी कृतः। 4/54 उनके बालों पर जो धूल बैठ गई थी, वह ऐसी लगती थी मानो कस्तूरी का चूरा लगा हो। शच्याश्चिरं पांडुकपोललंबांमंदाररन्यानलं कांश्चकार। 6/23 इंद्राणी के सिर की चोटी कल्पवृक्ष के फूलों का शृंगार न होने से उसके पीले गालों पर झूलने लगी। कुसुमोत्खचितान्वलीभृतश्चलयन्झंग रुचस्तवालकान्। 8/53 फूलों से गुंथी हुई और भौरों के समान काली तुम्हारी लटें जब वायु से हिलती
हैं।
इदमुच्छ्वसितालकं मुखं एव विश्रांत कथं दुनोति माम्। 8/55 तुम्हारा बिखरी अलकों से ढका मौन मुख देखकर मेरा हृदय फटा जा रहा है। अलकाभरणं कथं नु तत्तव नेष्यामि निवापमाल्यताम्। 8/62 तब तुम्हारे केशों को सजाने वाले उनके फूलों को मैं जलदान की अंजलि में कैसे ले सकूँगा। युवतयः कुसुमं दधुराहितं तदलके दलकेसरपेशलम्। 9/40 अपने प्रियतमों के हाथ से जूड़ों में खुंसे हुए वे सुंदर पंखड़ी वाले और पराग वाले फूल स्त्रियों के केशों में बड़े सुंदर लग रहे थे।
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