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कालिदास पर्याय कोश
एते वयं सैकतभिन्नशुक्तिपर्यस्त मुक्ता पटलं पयोधेः । 13/17
समुद्र के उस तट पर पहुँच गए, जहाँ बालू पर सीपों के फैल जाने से मोती बिखरे पड़े थे ।
10. महार्णव : - [ मह् + घ+टाप् + अर्णवः ] महासागर ।
पश्चात्पुरो मारुतयोः प्रवृद्धो पर्यायवृत्त्येव महार्णवोर्मी। 7/54
जैसे समुद्र की दो लहरें आगे-पीछे झोंका लेने वाले वायु से हटती बढ़ती रहती हैं।
तमेव चतुरन्तेशं रत्नैरिव महार्णवाः । 10/85
जैसे चारों समुद्रों ने रत्न देकर चारों दिशाओं के स्वामी राजा दशरथ को प्रसन्न कर लिया था ।
महार्णव परिक्षेपं लंकायाः परिखालघुम् । 12/66
उत्साह में लंका के चारों ओर का चौड़ा और गहरा समुद्र खाई से भी कम चौड़ा लगने लगा ।
11. महोदधि : - [ मह् + घ+टाप् + उदधि : ] महासागर ।
महोदधेः पूस इवेन्दुदर्शनाद् गुरुः प्रहर्षः प्रबभूवनात्मनि । 3/17
जैसे चन्द्रमा को देखकर महासमुद्र में ज्वार आ जाता है, वैसे ही पुत्र को देखकर
राजा को इतना आनंद हुआ कि वह उनके हृदय में न समा सका।
प्रापतालीवन श्याममुपकण्ठं महोदधेः । 4/34
उस समुद्र के किनारे पहुँचे, जो तट पर खड़े हुए वृक्षों की छाया पड़ने से काला दिखाई पड़ रहा था ।
ताम्रपर्णी समेतस्य मुक्तासारं महोदधेः । 4/50
ताम्रपर्णी और समुद्र के संगम से जितने मोती बटोरे थे ।
असौ महेन्द्राद्रिसमान सारः पतिमहेन्द्रस्य महोदधेश्च । 6 / 54
इनको देखती हो ! ये महेन्द्र पर्वत के समान शक्तिशाली हैं और महेन्द्र पर्वत और समुद्र दोनों पर इनका अधिकार है।
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12. रत्नाकर :- [ रमतेऽत्र, रम+न, तान्तादेशः + आकार: ] समुद्र ।
रत्नाकरं वीक्ष्य मिथः स जायां रामाभिधानो हरिरित्युवाच । 13/1 गुणी तथा राम कहे जाने वाले विष्णु भगवान्, समुद्र को देखकर सीता जी से एकान्त में बोले ।
कृत सीता परित्यागः स रत्नाकरमेखलाम् । 15/1
सीताजी को छोड़ देने पर राम ने केवल समुद्रों से घिरी हुई।