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कालिदास पर्याय कोश इस प्रकार तीनों लोकों में जो राम-रावण युद्ध प्रसिद्ध था, वह आज सफल हो गया। रामस्तुलितकैलासमरातिं बह्वमन्यत। 12/89 जिसने कैलास पर्वत को उंगलियों पर उठा लिया था, उसे देखकर राम ने समझा कि यह कुछ कम पराक्रमी नहीं है। रावणास्यापि रामास्तो भित्त्वा हृदयमाशुगः। 12/91 राम ने जो बाण छोड़ा, वह रावण की छाती को छेदकर पाताल को चला गया। यानादवातरददूरमहीतलेन मार्गेण भङ्गिरचितस्फटिकेन रामः। 13/69 स्फटिक मणियों से जड़ी हुई सीढ़ी से रामचन्द्र जी विमान से उतरे। रामज्ञया हरिचमूपतय स्तदानीं कृत्वा मनुश्यवपुरारुरुहुंर्गजेन्द्रान्। 13/74 राम के कहने से वानरों और भालुओं के सेनापति मनुष्यों का वेश बना-बनाकर हाथियों पर चढ़ गए। रामेण मैथिलसुतां दशकण्ठकृच्छ्रात् प्रत्युद्धृतां धृतिमयीं भरतो ववन्दे।
13/77 राम ने रावण रूपी संकट से जिसे उबार लिया था, उस विमान में बैठी हुई सीताजी को भरतजी ने जाकर प्रणाम किया। सीतास्वहस्तोपहृताग्यपूजान् रक्षः कपीन्द्रान्विससर्ज रामः। 14/19 राम ने उन राक्षसों और वानर-सेनापतियों को विदा किया, जिनकी चलते समय सीताजी ने स्वयं अपने हाथों से पूजा की। पितुर्नियोगाद्वनवासमेवं निस्तीर्य रामः प्रतिपन्न राज्यः। 14/21 इस प्रकार पिता की आज्ञा से वनवास की अवधि बिताकर राम ने अपने पिता का राज्य फिर से पाया। बभूव रामः सहसा सवाष्पस्तुषारवर्षीव सहस्य चन्द्रः। 14/84 उन बातों को सुनकर ओस बरसाने वाले पूस के चंद्रमा के समान, राम की आँख से टपटप आँसू गिरने लगे। अवेक्ष्य रामं ते तस्मिन्न प्रजह्वः स्वतेजसा। 15/3 वे अपने तेज से लवणासुर को भस्म कर डालते, पर राम को देखकर उन्होंने यह ठीक नहीं समझा। ते रामाय वधोपायमाचरव्युर्विबुध द्विषः। 15/5
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