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रघुवंश
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राम ने अपने बाणों से राक्षसों की सेना को इस प्रकार काट डाला। सा बाण वर्षिणं रामं योधयित्वा सुरद्विषाम्। 12/50 बाण बरसाने वाले राम से लड़कर वह राक्षसों की सेना। रामेण निहितं मेने पदं दशसु मूर्धसु। 12/52 मानो राम ने उसके दसों सिरों पर पैर रख दिया हो। मुमूर्च्छ सरव्यं रामस्य समान व्यसनै हीरौ। 12/57 इस सुग्रीव के भी राज्य और स्त्री को उसके भाई ने छीन लिया था, इसलिए उसने स्त्री से बिछुड़े हुए राम से शीघ्र ही मित्रता कर ली। कपयश्चेरुरार्तस्य रामस्येव मनोरथाः। 12/59 जैसे विरही राम का मन सीताजी की खोज में इधर-उधर भटकता था, वैसे ही वानर भी इधर-उधर घूमकर सीताजी की खोज करने लगे। प्रत्यभिज्ञानरत्नं च रामयादर्शयत्कृती। 12/64 फिर सीताजी से मिलने की पहचान के लिए उनसे चूड़ामणि लेकर, वे राम के पास लौट आए। श्रुत्वा रामः प्रियोदन्तं मेने तत्संगमोत्सुकः। 12/66 प्रिया का संदेश सुनकर राम उनसे मिलने के लिए उतावले हो गए। अथ रामशिरश्छेद दर्शनोभ्रान्तचेतनाम्। 12/74 उसी समय एक राक्षस ने माया से राम का सिर बनाकर सीता जी के सामने ला पटका, उसे देखते ही सीताजी मूर्छित होकर गिर पड़ी। रुरोध रामं शृङ्गीव टङ्कच्छिन्नमनः शिलः। 12/80 वह राम का मार्ग रोककर उसी प्रकार खड़ा हो गया, जैसे टांगों से कटी हुई कोई मैन सिल की चट्टान आ गिरी हो। रामेशुभिरितीवासौ दीर्घनिद्रां प्रवेशितः। 12/81 मानो राम के बाणों ने उसे यह कहकर गहरी नींद में सुला दिया। अरावणमरामं वा जगदद्येति निश्चितः। 12/83 आज संसार में या तो रावण ही नहीं रहेगा, या राम ही नहीं रहेंगे। रामं पदातिमालोक्य लंकेशं च वरूथिनम्। 12/84 रावण को रथ पर और राम को पैदल देखकर इन्द्र ने। राम रावणयोर्युद्धं चरितार्थमिवाभवत्। 12/87
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