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कालिदास पर्याय कोश उस ताड़का को देखकर राम ने स्त्री को मारने की घृणा और बाण दोनों एक साथ छोड़े। उन्मनाः प्रथमजन्मचेष्टितान्यस्मरन्नपि बभूव राघवः। 11/22 वहाँ अपने पूर्वजन्म के वामनावतार की लीलाओं का ठीक-ठीक स्मरण न होने पर भी, रामचंद्र जी कुछ उत्कंठित से हो गए। राघवान्वितमुपस्थितं मुनिं तं निशम्य जनको जनेश्वरः। 11/35 जब राजा जनक को यह समाचार मिला कि विश्वामित्र जी के साथ राम और लक्ष्मण भी आए हुए हैं। एवमाप्तवचनात्स पौरुषं काकपक्षधरेऽपि राघवे। 11/42 वैसे ही काकपक्षधारी राम में भी धनुष उठाने की शक्ति अवश्य होगी। मैथिल: सपदि सत्यसङ्गरो राघवाय तनयामयोनिजाम्। 11/48 सत्य प्रतिज्ञा करने वाले जनक ने राम को सीता समर्पित कर दी। तेन कार्मुक निषक्तमुष्टिना राघवो विगत भीः पुरोगतः। 11/70 मुट्ठी में धनुष पकड़कर परशुरामजी ने आगे खड़े हुए राम से कहा। तद्धनुर्ग्रहणमेव राघवः प्रत्यपद्यत समर्थमुत्तरम्। 11/79 तब राम ने इस प्रकार वह धनुष हाथ में ले लिया, मानो परशुरामजी के वचनों का वही ठीक उत्तर हो। तं कृपामृदुरवेक्ष्य भार्गवं राघवः स्खलितवीर्यमात्मनि। 11/83 दयालु रामचंद्र जी ने एक बार निस्तेज परशुरामजी को देखा। रावणावरजातत्र राघवं मदनातुरा। 12/32 काम से पीड़ित रावण की छोटी बहन राम के पास जा पहुंची। उदायुधानापततस्तान्दृप्तान्प्रेक्ष्य राघवः। 12/44 राम ने दूर से देखा कि हाथ में शस्त्र उठाए घमंडी राक्षस आगे बढ़े चले आ रहे
राघवास्त्र विदीर्णानां रावणं प्रति रक्षसाम्। 12/51 राम के अस्त्र से मारे हुए उन राक्षसों का समाचार रावण तक पहुँचाने के लिए। राक्षसा मृगरूपेण वञ्चयित्वा स राघवौ। 12/53 तब उसने मारीच को मायामृग बनाया और राम-लक्ष्मण को धोखा देकर । तस्मै निशाचरैश्वर्यं प्रतिशुश्राव राघवः। 12/69
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